सियाराम पांडेय ‘शांत’
मणिपुर जल रहा है। वहां जातीय और मजहबी तनाव चरम पर है। तनाव के इस आतिशी जखीरे में राजनीति की माचिस की तीली भी लगी हुई है। आजकल राजनीतिक दल हिंसा को शांत करने से अधिक उसे भड़काने में रुचि ले रहे हैं। जिस मैतेई समुदाय पर सशस्त्र हमले हो रहे हैं, उसमें सर्वाधिक हिंदू हैं और कुछ मुस्लिम हैं जबकि हमलावर समुदाय नगा और कुकी ईसाई धर्म में आस्था रखते हैं। मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के सरकार के प्रस्ताव के चलते इस संघर्ष ने तूल पकड़ा है। नगा और कुकी समुदाय के लोगों को लगता है कि अगर मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल कर लिया गया तो आरक्षण के तहत मिलने वाले उनके अपने लाभ में विभाजन की स्थिति बनेगी जो उनके समुदाय के लिए मुफीद नहीं है। 30-35 लाख की जनसंख्या वाले मणिपुर में तीन मुख्य समुदाय हैं; मैतई, नगा और कुकी। जनसंख्या में भी मैतई ज्यादा हैं और राज्य में उनका राजनीतिक वर्चस्व भी अधिक है। मणिपुर विधानसभा की कुल 60 सीटों में से 40 विधायक मैतई समुदाय से हैं। शेष 20 नगा और कुकी जनजाति से आते हैं। राज्य के 12 मुख्यमंत्रियों में से दो मैतेई समुदाय के थे। इसके बाद भी मैतेई समुदाय पर हमले समझ से परे हैं।
केंद्र और राज्य सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी मणिपुर में संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है तो इसके लिए कुछ राजनीतिक दलों का हिंसा रस आनंद भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। मणिपुर में हालात इतने खराब हो गए हैं कि कुकी और नगा समुदाय के लोग ड्रोन कैमरे से ढूंढ़कर मैतेई समुदाय के लोगों पर हमले कर रहे हैं, उनकी हत्या कर रहे हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। इस पर अविलंब विचार किए जाने और कुछ बेहद ठोस और कारगर कदम उठाए जाने की जरूरत है।
मणिपुर के मैतेई बहुल कांगपोकी जिले के खामेलोक गांव और इंफाल पूर्वी जिले में हथियारबंद लोगों के हालिया हमले में 12 लोगों का काल कवलित होना और 30 लोगों का घायल होना इस बात का संकेत है कि अधिकारों की जंग में अपना आपा खो चुके कुकी और नगा समुदाय के लोगों के लिए सरकार के निर्देश और कायदे-कानून मायने नहीं रखते। अपनी सुविधा के संतुलन के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। खामेलोक गांव में कुकी समुदाय के लोगों ने एक रात पहले भी हथियार बंद हमला कर नौ लोगों को घायल कर दिया था। ड्रोन से मैतेई समुदाय के लोगों की लोकेशन जानकर रात के वक्त उन पर उस समय हमले करना जब वे सो रहे हों, कायरता भी है और मानवाधिकारों का हनन भी। एक दिन पहले भी मणिपुर राज्य के बिष्णुपुर जिले के फोगा कचाओ इखाई गांव में कुकी समुदाय के लोगों की ज्यादती देखने को मिली थी। मैतेई इलाकों में बंकर बनाने की कुकी समुदाय की कोशिश को जब सुरक्षा बलों ने रोका तो वे उनसे भिड़ गए और उनके साथ फायरिंग भी की। यह और बात है कि हिंसा के मद्देनजर सरकार ने राज्य में इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी है लेकिन जब पानी सिर से ऊपर बह रहा हो तो सिर्फ सामान्य औपचारिकताओं से काम नहीं चलने वाला। कुछ खास और अप्रत्याशित भी करना होगा। समय पर करना होगा अन्यथा हाथ मलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
नॉर्थ-ईस्ट कोऑर्डिनेशन काउंसिल के प्रेसिडेंट और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह 10 जून को इस मुद्दे पर मिले भी थे और उन्होंने परस्पर आत्ममंथन भी किया था लेकिन इसका कोई असर कुकी समुदाय पर पड़ा हो, ऐसा तो नजर नहीं आता। जिस तरह कुकी समुदाय निरंतर उकसाने वाली कार्रवाई कर रहा है, उसे बहुत हल्के में नहीं लिया जा सकता। वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाले हैं। अमित शाह खुद भी मणिपुर का चार दिवसीय दौरा कर चुके हैं। जरूरत पड़ी तो आगे भी वे मणिपुर का दौरा कर सकते हैं। केंद्र सरकार ने अगर इस मामले पर सख्ती से नियंत्रण नहीं किया तो अन्य राज्यों में भी इस तरह के विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। वहां भी अधिकारों की जंग के लिए लोग लामबंद हो सकते हैं और राज्य के लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं।
3 मई के बाद से जारी हिंसा ने मणिपुर में 100 से ज्यादा लोगों की जानें ले ली है। 320 घायल हुए हैं और 47 हजार से ज्यादा लोगों को 272 राहत शिविरों में रहने को विवश होना पड़ रहा है। इस हिंसा के बाद राज्य के 11 अफसरों का तबादला हो चुका है। इनमें आईएएस और आईपीएस अफसर शामिल हैं। हिंसा के बाद गृह मंत्री अमित शाह जब चार दिन की यात्रा पर मणिपुर आए तो पुलिस महानिदेशक पी. डोंगल हटा दिए गए और उनकी जगह राजीव सिंह को कमान सौंपी गई। राज्य में शांति बहाली के लिए केंद्र सरकार ने राज्यपाल की अध्यक्षता में कमेटी भी बनाई जिसमें मुख्यमंत्री, राज्य सरकार के कुछ मंत्री, सांसद, विधायक और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता शामिल गए हैं।
9 जून को राजधानी इंफाल के पास कुकी बहुल खोकेन गांव में अलग-अलग घटनाओं में तीन लोगों की मौत हो गई थी। मणिपुर पुलिस ने बताया था कि बीते 24 घंटों में मणिपुर के इंफाल ईस्ट, काकचिंग, टेंग्नौपाल और विष्णुपुर जिलों में 57 हथियार, 1,588 गोला-बारूद और 23 बम बरामद किए गए हैं। हिंसा के बाद से अब तक राज्य में कुल 953 हथियार, 13,351 गोला बारूद और 223 बम बरामद किए गए हैं। 9 जून को ही केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने मणिपुर हिंसा के संबंध में 6 केस दर्ज किए थे। जांच के लिए दस सदस्यीय एसआईटी बनाई गई है । 9 जून को ही सर्वोच्च न्यायालय की अवकाश पीठ ने राज्य में 3 मई से लगे इंटरनेट बैन पर फौरन सुनवाई से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा था कि हाईकोर्ट में पहले सुनवाई होने दें।
वहीं, अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए आरक्षण मांग रहे मैतेई समुदाय के लोगों का तर्क है कि 1949 में भारतीय संघ में विलय से पूर्व उन्हें रियासत काल में जनजाति का दर्जा प्राप्त था। पिछले 70 साल में मैतेई आबादी 62 फीसदी से घटकर लगभग 50 फीसदी के आसपास रह गई है जबकि मणिपुर की नगा और कुकी जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने की मुखालफत कर रही है। राज्य के 90 प्रतिशत क्षेत्र में रहने वाला नगा और कुकी राज्य की आबादी का 34 प्रतिशत हैं। उनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में है। वर्तमान कानून के तहत अनुसार मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है।
मणिपुर में हालिया हिंसा की वजह मैतेई समुदाय को आरक्षण के प्रस्ताव को माना जा रहा है जबकि अगस्त, 2022 में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार द्वारा चूराचांदपुर के वनक्षेत्र में बसे नगा और कुकी जनजाति को घुसपैठिए बताते हुए वहां से निकालने के आदेश पर नगा और कुकी समुदाय की नाराजगी को भी इसकी मूल वजह माना जा रहा है। कुछ लोग दबी जुबान से हाई कोर्ट के आदेश को भी मौजूदा हिंसा के लिए जिम्मेदार मानते हैं। हाल ही में मणिपुर हाई कोर्ट ने मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने पर विचार करने को कहा था। यही नहीं, दस साल से लंबित इस प्रकरण पर मणिपुर सरकार की राय भी मांगी थी। हालांकि मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने संबंधी कोई का आदेश नहीं दिया है, बल्कि सिर्फ एक ऑब्जर्वेशन दिया है लेकिन नगा और कुकी समुदाय ने इसे गलत समझा और हिंसक रास्ता अख्तियार कर लिया, जिसे किसी भी लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस आब्जर्वेशन के अगले ही दिन मणिपुर विधानसभा की पर्वतीय क्षेत्र समिति ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर हाई कोर्ट के आदेश पर दुख जताया।
सोचना होगा कि जो भारतीय संस्कृति सहकार और सहयोग की रही है। दूसरों को भोजन कराकर खुद भोजन करने की रही है, उसमें कितनी गिरावट आ गई है। हमें आरक्षण का लाभ मिल रहा है, इसलिए दूसरे समुदाय को आरक्षण न मिले, यह सोच विकृत भी है और स्वार्थ लिप्सा की पराकाष्ठा भी है। आशा है कि इस हिंसा में अपने लिए राजनीतिक लाभ की गुंजाइश तलाशने वाले नेता वे चाहे किसी भी दल के हों, एक बार विचार जरूर करेंगे कि आरक्षण का यह खेल और कितनी जान लेगा? अपने निहित स्वार्थ के लिए देश के हितों को दांव पर लगाना कितना उचित है? जब कुकी और नगा इंफाल घाटी में जमीन खरीद सकते हैं तो मैतेई राज्य के अन्य क्षेत्रों में ऐसा क्यों नहीं कर सकते। किसी समुदाय विशेष को एक क्षेत्र में सीमित कर देना और रात के अंधेरे में उन पर गोलीबारी करना कितना उचित है, विचार तो इस पर भी किया जाना चाहिए।