सुप्रीम कोर्ट में नूपुर शर्मा के मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणी से पूर्व जज और ब्यूरोक्रेट्स नाराज हैं। इन लोगों ने सीजेआई एनवी रमना को एक खुला लेटर लिखा है। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा लांघी है और नूपुर के मामले में तुरंत अदालत को सुधार संबंधी कदम उठाने चाहिए।
यह खुला पत्र फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सोशियल जस्टिस, जेएंडके एंड लद्दाख एट जम्मू’ की ओर से लिखा गया है। इसमें मांग की गई है कि जस्टिस सूर्यकांत के सेवानिवृत्त होने तक उन्हें सुप्रीम कोर्ट के रोस्टर से हटा दिया जाना चाहिए। उन्हें नुपुर शर्मा केस की सुनवाई के वक्त की गई टिप्पणियों को वापस लेने को कहा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने पार की लक्ष्मण रेखा
नूपुर शर्मा की ओर से दायर अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के जजों की तीखी टिप्पणियों के खिलाफ 117 लोगों ने खुला पत्र लिखा है। इन लोगों में 15 पूर्व जज, 77 पूर्व नौकरशाह और 25 पूर्व सैन्य अफसर शामिल हैं। पत्र में कहा गया है, ‘सुप्रीम कोर्ट के दो जजों जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणियों ने लक्ष्मण रेखा लांघी है और हमें खुला पत्र लिखने के लिए मजबूर किया है।’
पत्र में कहा गया है कि जो दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियां की गई हैं, वे भारत की न्यायिक व्यवस्था पर एक अमिट दाग की तरह हैं। देश की कई हस्तियों की ओर से लिखे पत्र में कहा गया कि न्यायपालिका के इतिहास में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियों का कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। यही नहीं पत्र में मांग की गई है कि इस पर तत्काल सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए। इसका लोकतांत्रिक मूल्यों और देश की सुरक्षा पर गंभीर असर देखने को मिल सकता है।
पूर्व न्यायाधीशों, अफसरों व सैन्य अधिकारियों ने कहा है कि शीर्ष कोर्ट की टिप्पणियां न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन इनके जरिए न्यायिक औचित्य और निष्पक्षता को प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए।
पत्र पर इन हस्तियों के हैं हस्ताक्षर
हस्ताक्षर करने वालों में केरल हाईकोर्ट के जस्टिस पीएस रविंद्रन, बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस क्षितिज व्यास, गुजरात हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एसएम सोनी, राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस आरएस राठौर और प्रशांत अग्रवाल, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एसएन ढींगरा भी शामिल हैं।
पूर्व IAS अधिकारी आरएस गोपालन और एस कृष्ण कुमार, राजदूत (रिटायर) निरंजन देसाई, पूर्व DGP एसपी वैद, बी एल वोहरा, लेफ्टिनेंट जनरल वी के चतुर्वेदी (रिटायर) ने भी हस्ताक्षर किए हैं। इन लोगों ने कहा कि नूपुर के केस में सुप्रीम कोर्ट के जजों के कमेंट न्यायिक मूल्यों से मेल नहीं खाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फटकार के बाद मामला और उछला
बता दें, पैगंबर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी करने वाली बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) को हाल में सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई थी। दरअसल, नुपूर शर्मा ने उन्हें मिल रहीं धमकियों को देखते हुए उनके खिलाफ अलग-अलग शहरों में दर्ज मामले दिल्ली ट्रांसफर करने के लिए पिटीशन दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 1 जुलाई को सुनवाई के दौरान नुपुर शर्मा को जमकर फटकार लगाई थी।
शर्मा के पैगंबर मोहम्मद को लेकर आपत्तिजनक बयान पर देश में मचे बवाल के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया था। नुपुर को टीवी आकर माफी मांगने का भी सुझाव दिया था। यह भी कहा था कि देश में उसके बयान के कारण आग लगी है। देश में जो भी हो रहा है, उसके लिए वही एकमात्र जिम्मेदार है। इन टिप्पणियों के साथ ही शीर्ष कोर्ट ने नुपुर शर्मा के खिलाफ देशभर दर्ज एफआईआर को एकजुट कर दिल्ली स्थानांतरित करने और यहीं सुनवाई की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आज देश में जो हो रहा है उसके लिए यह महिला अकेले जिम्मेदार है। कोर्ट उदयपुर व अन्य जगहों पर पैगंबर पर टिप्पणी के बाद हुई हिंसा को भी नुपुर शर्मा के गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी को ही दोषी माना था। हालांकि इसके खिलाफ देश के 117 हस्तियों ने बयान जारी कर SC की टिप्पणी पर आपत्ती जताई है। 15 रिटायर्ड जज, 77 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स और 25 रिटायर्ड आर्म्ड फोर्स के अधिकारियों ने बयान जारी कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के बजाय, याचिका का संज्ञान लेने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और उचित फोरम (उच्च न्यायालय) के पास जाने को कहा, वो ये जानते हुए कि हाईकोर्ट के पास ट्रांसफर का अधिकार क्षेत्र नहीं है।