सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए बिना शादी के पैदा हुए बच्चों को भी पिता की प्रॉपर्टी में हकदार माना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अगर महिला और पुरुष लंबे समय तक साथ रहे हैं तो उसे शादी जैसा ही माना जाएगा और इस रिश्ते से पैदा हुए बच्चों को भी पिता की प्रॉपर्टी में हक मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए यह फैसला सुनाया।
केरल हाईकोर्ट का फैसला पलटा
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विवाह के सबूत के अभाव में एक साथ रहने वाले पुरुष और महिला का ‘नाजायज’ बेटा पैतृक संपत्तियों में हिस्सा पाने का हकदार नहीं है।
केरल के एक व्यक्ति ने अपने पिता की संपत्ति में हुए बंटवारे में हिस्सा न मिलने पर हाईकोर्ट में केस किया था। उसने कहा था- उसे नाजायज बेटा बताकर हिस्सा नहीं दिया जा रहा है। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था- जिस व्यक्ति की संपत्ति पर वह हक जता रहे हैं, उससे उनकी मां की शादी नहीं हुई थी, ऐसे में उन्हें परिवार की संपत्ति का हकदार नहीं माना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द किया, जिसमें कोर्ट ने एक युवक को उसके पिता की संपत्ति में इसलिए हिस्सेदार नहीं माना था, क्योंकि उसके माता-पिता की शादी नहीं हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- दोनों की शादी भले ही न हुई हो, लेकिन दोनों लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह ही साथ रहे हैं। ऐसे में अगर DNA टेस्ट में यह साबित हो जाए कि बच्चा उन दोनों का ही है, तो बच्चे का पिता की संपत्ति पर पूरा हक है।
40 साल से अटका था मामला
सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले पर अपना फैसला सुनाया है, वो बीते 40 वर्षों से अलग-अलग अदालत में चक्कर काट रहा था। सबसे पहले ये मामला लोअर कोर्ट पहुंचा जहां फैसले में कहा था कि लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहने वाले कपल के बेटे को पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदार माना जाना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट इसे खारिज करते हुए अपनी असहमति जताई। उच्च न्यायालय ने फैसला पलटते हुए ट्रायल कोर्ट से फिर से सुनवाी करने को कहा।
इसके बाद इस रिमांड ऑर्डर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने हाईकोर्ट से ही मामले में फैसला देने को कहा। हाईकोर्ट अपने पहले के फैसले पर कायम रहा। इसके बाद मामला दोबारा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और शीर्ष अदालत ने लिव इन में रहे रहे कपल के बेटे को पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार माना।
2010 में लिव इन को सुप्रीम कोर्ट ने दी थी मान्यता
2010 में सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2 (एफ) से भी जुड़वाया था। दरअसल, इससे पहले लिव इन में घरेलू हिंसा के काफी मामले आते रहे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब इसे लेकर FIR दर्ज कराई जा सकती है। लिव इन रिलेशन के लिए कपल को पति-पत्नी की तरह साथ रहना होगा, हालांकि इसके लिए कोई टाइमिंग फिक्स नहीं है कि कितने साल या महीने।