जम्मू एयरपोर्ट पर ड्रोन से धमाकों के बाद लगातार कश्मीर में ड्रोन (Drone) की गतिविधियां देखी जा रही है। शुक्रवार को एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुबह करीब साढ़े चार बजे अरनिया सेक्टर (Arnia Sector) में ड्रोन देखे गए हैं। हालांकि, ड्रोन के खतरों के मद्देनजर पहले से ही अलर्ट बीएसएफ जवानों ने ड्रोन पर फायरिंग भी की, जिसके बाद वह ड्रोन वापस पाकिस्तान की ओर भाग गया।
जवानों ने उस समय गोलीबारी की जब ड्रोन अरनिया सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने की कोशिश कर रहा था. फायरिंग होते ही ड्रोन फौरन वापस लौट गया. सूत्रों ने बताया कि ड्रोन को इलाके की निगरानी करने के लिए भेजा गया था.
जम्मू एयर फोर्स स्टेशन पर ड्रोन से किए गए हमले के पांच दिनों के अंदर यह तीसरा मौका है जब पाकिस्तानी ड्रोन ने भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 27 जून को हुए हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गई है जिसके पीछे लश्कर ए तैयबा के सरगना हाफिज सईद और आईएसआई का हाथ है. इस हमले की प्लानिंग लश्कर के ही बनाए गए अन्य संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने की है। टीआरएफ ही इस तरह के हमलों को अंजाम देने की साजिशें रचता है।
एयर फोर्स स्टेशन पर हमले के अगले ही दिन जम्मू के कालूचक मिलिट्री स्टेशन के पास भी दो ड्रोन दिखे थे. सेना के जवानों ने जैसे ही फायरिंग की, वहां से भी ड्रोन भाग गए. कालूचक मिलिट्री स्टेशन के पास पहला ड्रोन रात 11:45 बजे और दूसरा ड्रोन रात 2:40 बजे दिखा था.
रक्षा सूत्रों के अनुसार, यह स्पष्ट हो चुका है कि कश्मीर में ड्रोन हमले में आतंकियों को ड्रोन उपलब्ध कराने और उसके संचालन का प्रशिक्षण देने में बाकायदा मदद प्रदान की गई है। ड्रोन की उपलब्धता आसान नहीं है। लेकिन यदि किसी प्रकार आतंकी ड्रोन हासिल कर भी लें तो उसके संचालन के लिए प्रशिक्षण जरूरी है। खासकर जब कोई विस्फोटक उसके जरिये किसी लक्ष्य पर गिराया जाना है। किस समय ड्रोन उड़ाया जाना है, कैसे विस्फोटक में ब्लास्ट करना है तथा किस प्रकार उसे राडार की नजरों से बचाना है, यह कार्य एक प्रशिक्षित आतंकी ही कर सकता है। स्पष्ट है कि आतंकियों को तकनीक के साथ-साथ उसका प्रशिक्षण भी प्राप्त हो रहा है।