उत्तराखंड और गुजरात सरकार ने समान नागरिक संहिता को लेकर पैनल का गठन किया था। जिसको चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई। इस पर अब सर्वोच्च अदालत का फैसला आ गया है। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए UCC पैनल को हरी झंडी दिखा दी। ऐसे में राज्य सरकार अब अपने प्लान के हिसाब से इस पर काम कर सकती है।
मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने कहा कि ये किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं है। ऐसा करना राज्यों का अधिकार है। गुजरात और उत्तराखंड सरकार ने उन्हीं शक्तियों के तहत ये फैसला लिया है। यूसीसी को लागू करने से पहले उसके हर पहलू पर विचार करना जरूरी है, इसी वजह से पैनल का गठन हुआ। जिसके चलते इसके खिलाफ याचिका को खारिज किया जाता है।
दरअसल बीजेपी लंबे वक्त से समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठा रही है। चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड और गुजरात सरकार ने इसको लेकर बड़ा फैसला लिया और अपने-अपने राज्य में सरकारी पैनल का गठन किया। जिसका काम UCC लागू करने की व्यवहार्यता की जांच करना है। बहुत से लोग और संगठन सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे थे। ऐसे में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां से उन्हें बड़ा झटका लगा है।
गुजरात और उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में यूसीसी को बड़ा मुद्दा बनाने वाली भाजपा हमेशा से देशभर में इसको लागू करने की बात करती आई है। इन दोनों राज्यों में UCC लागू करने के ऐलान के बाद सरकारी पैनल गठित करने के फैसले के खिलाफ याचिका का खारिज होना भी भाजपा के लिए बड़ी जीत है।
क्या है UCC?
भारत में कई धर्म के लोग रहते हैं, जो अपनी प्रथाओं के हिसाब से शादी, तलाक, जमीन-जायदाद आदि का बंटवारा करते हैं। इसी को खत्म करने के लिए कई पार्टियां समान नागरिक संहिता की बात कर रही हैं। इसके मुताबिक भारत में रहने वाले सभी धर्म और जातियों पर एक ही तरह का नियम लागू होगा। इसके अलावा अलग-अलग धर्मों के नियम की वजह से न्यायपालिका पर भी ज्यादा बोझ पड़ता है। यूसीसी लागू होने से वो कम हो जाएगा। वैसे ज्यादातर बीजेपी शासित राज्य इसको लाने के पक्ष में हैं, लेकिन कांग्रेस समेत कई दल इस पर सवाल उठा रहे हैं।