चुनौतीपूर्ण किरदारों को महत्व देती हैं कनक यादव
डी डी किसान पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक ‘किसके रोके रुका है सवेरा’ में कनक यादव बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार निभा रही है। आम तौर पर हमारे समाज मे लड़कियों को इसलिए ज्यादा पढ़ाया लिखाया नही जाता क्योंकि लोगों का मानना है कि लड़की पढ़ लिखकर करेगी क्या? संभालना तो उसे चूल्हा चौका ही है। लेकिन अब देश बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है। महिलाएं अब हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। ‘किसके रोके रुका है सवेरा’ में कनक यादव का भी किरदार कुछ इसी तरह का है। वह एक ऐसी लड़की का किरदार निभा रही है, जिसकी कम उम्र में शादी कर दी जाती है।
शादी के बाद उसे वहां के रीति रिवाजों और बंधनो में बांध दिया जाता है। उसे पढ़ने लिखने यह कहकर नही दिया जाता है कि घर के काम काज पति परिवार को ही तो संभालना है, क्या करेगी पढ़ लिख कर। तमाम रुकावटों और विरोध के वावजूद वह किस तरह से पढ़ लिखकर एक अधिकारी बनती है और समाज को मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास करती है। कनक कहती है कि यह किरदार अपने आपमें काफी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसे निभाने में काफ़ी मजा भी आ रहा है।
आज कनक यादव भले ही एक्टिंग में काफी व्यस्त हो लेकिन उन्होंने एक्टर बनने के बारे में कभी सोचा ही नही था। लेकिन हां, कुछ नया काम करने में उन्हें बहुत मज़ा आता था क्योंकि इससे उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलता था। अपने इसी जनून के चलते उन्होंने सिटी लेबल पर कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया और मिस नोयडा, मिस ब्यूटीफूल स्माइल चुनी गई।
फ़िल्मो की बात करें तो कनक यादव ने बतौर अभिनेत्री अपने कैरियर की शुरुआत एक बड़ी फ़िल्म से की थी। लेकिन फ़िल्म रिलीज नहीं हो पाई तो कनक उस फिल्म का चर्चा नही करना चाहती। छोटे पर्दे पर कनक की शुरुआत डीडी के ‘नैन्सी’ धारावाहिक से हुई। इसमें कनक ने रज़ा मुराद की बेटी सौंदर्या किरदार का किरदार निभाया था। इस धारावाहिक से उन्हें खूब पहचान मिली और देखते ही देखते वह छोटे पर्दे की स्टार अभिनेत्री बन गयी। इसके बाद उन्होंने ‘जय जय जय बजरंगबली, बालिका वधू, गौतम बुद्धा, पुनर्विवाह, दिल आशना है जैसे कई धारावाहिको और शार्ट फ़िल्मो में काम किया।
भोजपुरी फिल्मों में कनक की शुरुआत ‘रब्बा इश्क़ ना होवे’ से निर्माता के रूप में हुई। बाद में लोगों के सलाह पर वह फ़िल्म की नायिका बनने को राजी हुई। जब फ़िल्म रिलीज हुई तो कनक के काम को सबने खूब सराहा। इससे पहले भोजपुरी सिनेमा के बारे में उन्हें यह पता था कि भोजपुरी फ़िल्मे अच्छी नही होती। लेकिन इस फ़िल्म के बाद उनका भोजपुरी सिनेमा के प्रति नजरिया बदला और वह अब तक भोजपुरी में 8 से 9 फ़िल्मे कर चुकी हैं जिसमें दामाद हो तो ऐसा, प्यार तो होना ही था आदि प्रमुख है। इसी महीने से वह एक और भोजपुरी फ़िल्म ‘आन बान शान’ की शूटिंग अयोध्या में करने जा रही है जिसमे उनका काफी चुनौतीपूर्ण किरदार है।
संतोष साहू