काशी की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ( Mathura Srikrishana Temple) का मामला भी तूल पकड़ता जा रहा है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद पर मथुरा कोर्ट में आज सुनवाई हुई. कोर्ट ने याचिका को स्वीकार लिया है. अब इसपर सिविल कोर्ट में सुनवाई होगी.
रिविजन के तौर पर दायर इस याचिका पर पिछले करीब डेढ़ साल से सुनवाई चल रही थी। आज जिला जल की अदालत ने इसे स्वीकार कर लिया. कोर्ट के इस फैसले पर सभी की निगाहें टिकी थीं. अब सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में मुकदमे का ट्रायल शुरू होगा. एक जुलाई को इस केस पर अगली सुनवाई होगी.
सितम्बर 2020 में सिविल कोर्ट ने इस केस को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि ये ‘राइट इश्यू’ नहीं है. यानी इस मामले में किसी को वाद करने का अधिकार नहीं है। मामला जिला जज की अदालत में गया. आज जिला जज की अदालत ने वादी पक्ष की रिविजन याचिका को स्वीकार कर लिया और अगली सुनवाई के लिए एक जुलाई की तारीख तय कर दी.
बता दें कि 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक का विवाद है. इसमें 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थली के पास तो 2.5 जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. याचिका में 2.37 एकड़ जमीन को मुक्त करने की मांग की गई है. कहा गया है कि श्रीकृष्ण विराजमान की कुल 13.37 एकड़ जमीन में से करीब 11 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान स्थापित है. जबकि शाही ईदगाह मस्जिद 2.37 एकड़ जमीन पर बनी है. इस 2.37 एकड़ जमीन को मुक्त कराकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान में शामिल करने की मांग याचिका में की गई है.
याचिका में दावा किया गया है कि ईदगाह का निर्माण केशवदेव मंदिर की जमीन पर किया गया जो भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है. वादी पक्ष का कहना है कि इस मामले में संस्थान को समझौता करने का अधिकार नहीं है. जमीन ठाकुर विराजमान केशव कटरा मंदिर के नाम से है.
इस याचिका को एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री ने सितम्बर 2020 में भगवान श्रीकृष्ण की सखी के तौर पर दाखिल किया था. सिविल कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। इसके बाद जिला जज की अदालत में मामला दाखिल किया गया जिस पर करीब डेढ़ साल से सुनवाई चल रही थी.
यह याचिका एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री, हरि शंकर जैन, विष्णु जैन सहित छह लोगों की तरफ से दाखिल किया गया था. वाद में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान को विपक्षी बनाया गया. मामले की सुनवाई करीब डेढ़ साल तक चली. पक्ष-विपक्ष को सुनने के बाद गुरुवार को जिला अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया.