केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी पर हलफनामा दायर किया है। इसमें कहा गया है कि 500 और 1000 के नोटों की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। इसलिए फरवरी से लेकर नवंबर तक RBI से विचार-विमर्श के बाद ही 8 नवंबर को इन नोटों को चलन से बाहर करने यानी नोटबंदी का फैसला लिया गया था। इस मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नोटबंदी की संवैधानिक वैधता को लेकर सवाल पूछा था।
इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा, “आरबीआई के साथ नोटबंदी को लेकर अच्छी तरह से विचार-विमर्श किया गया था। तत्कालीन वित्त मंत्री ने संसद में बताया था कि इसपर आरबीआई के साथ परामर्श फरवरी 2016 में ही शुरू हुआ था। हालांकि, इस परामर्श और फैसले को गोपनीय रखा गया था।”
सरकार ने नोटबंदी के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि नोटबंदी करने का निर्णय रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की विशेष अनुशंसा पर लिया गया था। नोटबंदी से जाली करंसी, टेरर फंडिंग, काले धन और कर चोरी जैसी समस्याओं से निपटने की प्लानिंग का हिस्सा और असरदार तरीका था। यह इकोनॉमिक पॉलिसीज में बदलाव से जुड़ी सीरीज का सबसे बड़ा कदम था।

केंद्र ने अपने जवाब में यह भी कहा कि नोटबंदी से नकली नोटों में कमी, डिजिटल लेन-देन में बढ़ोत्तरी, बेहिसाब आय का पता लगाने जैसे कई लाभ हुए हैं। अकेले अक्टूबर 2022 में 730 करोड़ का डिजिटल ट्रांजैक्शन हुआ, यानी एक महीने 12 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन रिकॉर्ड किया गया है। जो 2016 में 1.09 लाख ट्रांजैक्शन यानी करीब 6952 करोड़ रुपए था।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा था विस्तृत जवाब
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार और आरबीआई से नोटबंदी के फैसले पर डिटेल में जवाब मांगा था। अदालत ने कहा था कि केंद्र और आरबीआई 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले पर हलफनामा दाखिल करें। सबसे पहले विवेक नारायण शर्मा ने केंद्र सरकार को चुनौती दी थी। 2016 के बाद से नोटबंदी के खिलाफ 57 और याचिकाएं दर्ज कराई गई थीं।
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है सुनवाई
जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन, और जस्टिस बीवी नागरत्ना वाली 5 जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। अब अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी.