एक हजार से अधिक प्राध्यापकों की कमी
मुंबई-जिन सरकारी कॉलेजों में पूर्ण कलिक प्रिंसिपल ही न हो वहां की शिक्षा व्यवस्था और अनुशासन का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. यही नहीं अगर इन कॉलेजों में प्राध्यापकों के पद भी रिक्त पड़ें हो तो विद्यार्थियों के भविष्य का क्या होगा। वर्तमान में राज्य के राजकीय महाविद्यालयों में प्राचार्यों के लिए लगभग 400 पद खाली पड़े हैं जबकि प्रोफेसरों के भी लिए हजारों पद तैनातियों का इंतजार का रहे हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देश एवं मुंबई उच्च न्यायालय के निर्णय को एक वर्ष पूरा होने के बावजूद भी इन पदों पर भर्ती नहीं की गयी है. कई कॉलेजों में तो वर्तमान में पूर्णकालिक प्राचार्य भी नहीं हैं। इसके कारण अनेक कॉलेज परीक्षा योजना बनाने और आपातकालीन निर्णय लेने में पूर्णकालिक प्राचार्यों की कमी से निराश हैं। हजारों प्रोफेसरों की भर्ती नहीं होने से विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित हो रही है। कई ऐसे कॉलेज हैं जहां में 20 से 30 पद रिक्त हैं।
मुंबई हाईकोर्ट ने पदों को तत्काल भरे जाने का आदेश एक साल पूर्व ही दे दिया था। यही नहीं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी भर्ती करने के निर्देश दिए थे। फिर भी लालफीताशाही के चलते कॉलेजों की स्थिति नहीं बदली है। राज्य सरकार ने लगभग डेढ़ साल पहले प्राध्यापकों के 40 फीसदी और प्राचार्यों के 100 फीसदी पदों पर भर्ती की अनुमति दी थी।प्राध्यापकों के अनुसार अधिकांश संस्था संचालक प्रिंसिपल के पद को भरने के लिए न जाने क्यों उदासीनता बरतते हैं। विश्वविद्यालय भी पूर्णकालिक पदों को भरने के लिए कोई कदम नहीं उठाता है। कुछ कॉलेजों में चार से पांच साल के लिए प्रभारी प्रिंसिपल नियुक्त कर दिए जाते हैं जबकि नियमों के अनुसार एक से अधिक वर्षों के लिए प्रभारी पद को मान्यता देना अवैध है। शिक्षा विशेषज्ञों के अनुसार विश्वविद्यालय ही नियमों को दरकिनार कर प्रभारी प्राचार्यों के कार्यकाल को विस्तार देता है। कई कॉलेजों का मूल्यांकन राष्ट्रीय मूल्यांकन और रेटिंग परिषद (एनएसी) द्वारा नहीं किया गया है। नैक मानदंडों द्वारा पूर्णकालिक प्रोफेसरों और प्रिंसिपलों की नियुक्ति आवश्यक होती है। नियुक्ति में देरी के कारण मूल्यांकन भी ठप है। हालांकि इस शैक्षणिक वर्ष में कोरोना के कारण मूल्यांकन कार्य सुस्त हो गया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या मूल्यांकन अगले साल से पहले होगा।