द्रौपदी मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति चुन ली गईं हैं। गुरुवार को आए नतीजों में मुर्मू ने अपने प्रतिद्वंदी यशवंत सिन्हा को भारी अंतर से मात दे दी। मुर्मू की उम्मीदवारी का 44 छोटी-बड़ी पार्टियों ने समर्थन किया था. मगर चुनाव में क्रॉस वोटिंग भी हुई. असम से लेकर गुजरात तक जमकर क्रॉस वोटिंग हुई है। यानी विपक्ष के कई सांसदों और विधायकों ने भी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को दावा किया विपक्ष के 22 विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट डाला है। इनमें 15-16 विधायक कांग्रेस के हैं। सरमा का कहना है कि इन सभी ने अपनी पार्टी लाइन से हटकर सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को वोट दिया है। वहीं गुजरात में 7, गोआ में 3 और राजस्थान में 2 कांग्रेस विधायकों के क्रॉस वोटिंग का दावा है।
राष्ट्रपति चुनाव में असम के 126 में से 124 विधायकों ने वोट डाले हैं। वहीं एआईयूडीएफ के दो विधायक देश से बाहर थे। असम विधानसभा में एनडीए के 79 विधायक हैं, वहीं मुर्मू को यहां कुल 104 वोट मिले हैं। वहीं संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को मात्र 20 वोट हासिल हुए हैं, जबकि विधानसभा में विपक्ष के 44 सदस्य हैं।
सरमा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि द्रौपदी मुर्मू को जो अतिरिक्त 22 वोट मिले हैं, उनमें 15 से 16 कांग्रेस विधायकों के हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव में विधायक और सांसद पार्टी लाइन नहीं, बल्कि अपनी अंतरात्मा के आधार पर वोट करते हैं।
वहीं झारखंड की बात करें तो यहां पर द्रौपदी मुर्मू को कुल 70 वोट मिले हैं। कुल 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को महज 9 वोट मिले हैं। यहां पर कुल 80 विधायकों ने राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा लिया था, जबकि भाजपा के विधायक इंद्रजीत महतो बीमार होने के चलते वोट डालने नहीं पहुंचे थे। एनडीए को यहां पर 79 में से कुल 70 वोट मिले हैं, जबकि उसने यहां से 60 वोट मिलने की घोषणा की थी। इनमें 25 भाजपा, 30 झारखंड मुक्ति मोर्चा, दो अजसू, दो निर्दलीय और एक नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के विधायक का वोट था।
दूसरी तरफ यूपीए ने संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के लिए झारखंड विधानसभा से 20 वोट पाने की घोषण की थी, इसमें से 18 कांग्रेस और आरजेडी व सीपीआई (एमएल) से एक-एक वोट की उम्मीद थी।
सिर्फ इतना ही नहीं कांग्रेस को अन्य राज्यों में भी एकजुटता के अभाव का सामना करना पड़ा है। गुजरात में 7, गोआ में 3 और राजस्थान में 2 कांग्रेस विधायकों द्वारा क्रॉस वोटिंग किए जाने का दावा सामने आया है। इन हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि संयुक्त विपक्ष का फॉर्मूला नाकाम होता नजर आ रहा है।
गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले ही विपक्ष की एकता में दरार आती दिख रही है। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार चुनने में आगे रहीं टीएमसी चीफ और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उपराष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार चयन में कहीं नहीं दिखीं। यही नहीं, अब तो ममता बनर्जी की पार्टी ने मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार चुने जाने पर नाराजगी जताई है। वहीं इसको लेकर कांग्रेस और एनसीपी ने भी बयान जारी किया है।