हिजाब विवाद (Hijab Congroversy) को लेकर पूरे देश में हंगामा मचा है। कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High court) में मामले की सुनवाई जारी है। इस पूरे विवाद को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है। अब बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भी शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने को लेकर टिप्पणी की है।
उन्होंने कहा कि हिजाब महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट बनाता है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में 7वीं सदी के कानून क्यों लागू होने चाहिए। तस्लीमा ने देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil code) लागू करने का समर्थन किया है।
स्कूलों में धार्मिक कट्टरता के लिए जगह नहीं हो
अंग्रेजी वेबसाइट फर्स्टपोस्ट.कॉम को दिए एक इंटरव्यू में तसलीमा नसरीन ने कहा, मेरा मानना है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक शैक्षणिक संस्थान को अपने छात्रों के लिए सेक्यूलर ड्रेस कोड अनिवार्य करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि स्कूल और कॉलेज छात्रों को अपनी धार्मिक पहचान घर पर रखने के लिए कहते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। स्कूलों में धार्मिक कट्टरता, कट्टरवाद और अंधविश्वास के लिए जगह नहीं हो सकती। स्कूलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लैंगिक समानता, उदारवाद, मानवतावाद और वैज्ञानिक सिद्धांतों को पढ़ाया जाना चाहिए।
जल्द बंद करनी चाहिए हिजाब और बुर्का प्रथा
तसलीमा ने हिजाब विवाद पर साफ कहा कि हिजाब, नकाब और बुर्का का एक ही उद्देश्य है महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में बदलना। उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि महिलाओं को पुरुषों से छिपाने की जरूरत है जो उन्हें देखकर लार टपकाते हैं। तसलीमा ने कहा कि यह बहुत ही अपमानजनक है। इस प्रथा को जल्द से जल्द बंद कर देना चाहिए।
7वीं सदी के कानून 21वीं सदी में लागू नहीं हो सकते
हिजाब के इस्लाम से जुड़े होने के सवाल पर तसलीमा ने कहा कि मुद्दा यह नहीं है कि हिजाब इस्लाम से जुड़ा है या नहीं। उन्होंने कहा, मुद्दा यह है कि हम 21वीं सदी में रह रहे हैं और सातवीं सदी में बने कानून अभी लागू नहीं हो सकते हैं और होने भी नहीं चाहिए। तसलीमा ने कहा कि हमें यह भी समझने की जरूरत है कि बुर्का और हिजाब कभी भी एक महिला की पसंद नहीं हो सकते। उन्हें तभी पहना जाता है जब विकल्प छीन लिए जाते हैं। यह अक्सर परिवार के सदस्य होते हैं जो अपनी महिलाओं को बुर्का / हिजाब पहनने के लिए मजबूर करते हैं। हमें यह समझने की जरूरत है कि बुर्का/हिजाब कभी भी किसी व्यक्ति की पहचान का अभिन्न अंग नहीं हो सकता।
समान नागरिक संहिता की वकालत
यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में सवाल पर तसलीमा ने कहा, मेरा मानना है कि किसी भी धर्मनिरपेक्ष राज्य में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। धर्मनिरपेक्ष राज्य में किसी भी समुदाय के लिए अलग व्यक्तिगत कानून क्यों होना चाहिए? उन्होंने कहा कि सभी को, विशेष रूप से मुसलमानों को, यह समझना चाहिए कि मुख्यधारा का हिस्सा बनकर वे गरीबी, लैंगिक और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आसानी से लड़ सकते हैं।