मुम्बई। एक बार फिर सियासी माहौल में गर्माहट उत्पन्न हो रही है। कांग्रेस और कुछ मुस्लिम संगठन का विरोध खुलकर सामने आया है। दरअसल मुद्दा है असम सरकार की नई नीति का। असम के शिक्षामंत्री हेमंत विस्वा सरमा ने नियम निकाला है कि सरकार द्वारा संचालित मदरसों को बंद किया जाना चाहिए। मदरसों को विद्यालय में परिवर्तित कर एक समान शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी और जो शिक्षक हैं उन्हें दूसरे विद्यालय में स्थानान्तरित किया जाएगा। भारत अगर धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए सभी जगह समान शिक्षा व्यवस्था लागू हो। सरकारी खर्चे पर मदरसे नहीं चलाये जाएंगे और न ही संस्कृत विद्यालय चलाये जाएंगे। आगामी एक नवंबर से इस नीति पर प्रस्ताव पेश किया जाएगा। वर्तमान समय में लगभग छह सौ से अधिक मदरसे सरकारी सहयोग से चल रहे हैं। असम में नौ सौ से अधिक मदरसे हैं, जो निजी संस्थान हैं वे यथावाह स्वतंत्र रूप से चलते रहेंगे। केवल सरकारी अनुदान युक्त मदरसों पर रोक होगी। असम के शिक्षामंत्री के इस निर्णय से राजनीतिक गलियारों पर हलचल मच गयी है।
असम सरकार ने दलील दी है कि धर्मनिरपेक्ष देश है तो केवल एक धर्म विशेष पर सरकारी धन खर्च करना उचित नहीं। यदि कुरान पढ़ाई जाए तो गीता और बाइबल क्यों नहीं? विपक्ष इस मामले को आरएसएस से जोड़ कर देख रही है। वर्तमान में मुस्लिम धर्म के बच्चे प्रथमिक शिक्षा पच्चीस प्रतिशत, माध्यमिक शिक्षा चौदह प्रतिशत और उच्च शिक्षा और डिप्लोमा में केवल चार प्रतिशत ही शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं। मदरसे में दी गयी शिक्षा आर्थिक स्थिति की उन्नति में असरकारक नहीं है।अनुच्छेद 29 के अनुसार भाषा लिपि संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार है। अनुच्छेद 30 के अनुसार धर्म भाषा के आधार पर शिक्षण चलाने का अधिकार है। किंतु संविधान में अल्पसंख्यक का उल्लेख नहीं है।
असम सरकार के अनुसार सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसे बंद कर उनकी जगह सरकारी विद्यालय खोले जाएंगे जिससे बच्चों को सभी विषयों की शिक्षा प्राप्त हो जो उनके भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होंगे।दूसरी तरफ इस मामले को लव जिहाद के रूप में भी देखा जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अधिकांश मुस्लिम लड़के सोशल नेटवर्किंग साइट्स में हिन्दू नाम से फेक प्रोफ़ाइल बनाकर लव जिहाद को अंजाम देते हैं। कुछ का मानना है कि मदरसों की आड़ में मुस्लिम बच्चों को जिहादी बनाये जा रहे हैं। शेपियाँ की मदरसे से चार जिहादी पकड़े गए हैं, ऐसे देशभर में कई मदरसे हैं जहाँ से शिक्षित बच्चे आगे जेहादी के रूप में उभरते हैं जो देश और समाज के लिए नासूर साबित होते हैं। सन 2001 में मुस्लिम आबादी दर 29.5 थी जिसमें सन 2011 में 24.6 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या में इजाफा हुआ है।
कांग्रेस नेता रासिद अल्वी का कहना है कि मदरसे पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। वहीं समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी का कहना है कि मदरसे चलाने के लिए सरकार से एक रुपये की सहायता न लेवें।भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिमों के उत्थान के लिए कहा था कि मुसलमान के एक हाथ में कुरान और एक हाथ में कम्प्यूटर देकर शिक्षा व्यवस्था में सुधार किया जाएगा। हाल ही में नई शिक्षा नीति लागू किया गया है। अब असम में मदरसे बंद कर क्या मुस्लिम शिक्षा में नवीन सुधार लाने का ये पहला चरण है, या फिर कोई नई रणनीति?
– गायत्री साहू