बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि एक व्यक्ति का वैध जाति प्रमाण पत्र पितृसत्तात्मक यानी उनके रिश्तेदार की सामाजिक स्थिति के निर्णायक प्रमाण के रूप में होगा. दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में ठाणे निवासी भरत तायडे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान ये फैसला दिया.
उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का वैध जाति प्रमाण पत्र उसके पिता के जाति के आधार पर ही होगा. जस्टिस एसबी शुक्रे और जीए सनप की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया. बता दें कि, पितृसत्तात्मक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें जीवन के हर क्षेत्र के संबंध में फैसला लेने का एकमात्र अधिकार पुरुषों को होता है.
पीठ ने कहा कि भारत में अधिकांश परिवार पितृसत्तात्मक पैटर्न का पालन करते हैं यानी ज्यादातर परिवार में पिता की जाति और संस्कारों के आधार पर ही बच्चे की पालन पोषण होता आया है. जिसे देखते हुए किसी भी व्यक्ति की जाति उसके पिता की जाति या जनजाति से संबंधित माना जाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि एक ही परिवार के दो भाईयों की जाति एक ही होगी. वह चाहें तो दास्तवेज में अपनी मां या अन्य किसी के आधार पर प्रमाण पत्र नहीं बनवा सकतें. अपने फैसले में, हाईकोर्ट ने राज्य में जाति जांच समितियों को कोर्ट के आदेशों की अवहेलना नहीं करने की भी चेतावनी दी और कहा कि यदि प्रमाण पत्र बनाने वाली ऐसी समिति हाई कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करती पाई गई तो भविष्य में गंभीर कार्रवाई की जाएगी.
आदेशों का करना होगा इमानदारी से पालन
कोर्ट ने कहा, “हम न केवल ठाणे में जांच समिति को बल्कि अन्य सभी जांच समितियों को भी उच्च न्यायालयों के आदेशों की अवहेलना करने और हाई कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का ईमानदारी से पालन करने के खिलाफ चेतावनी देते हैं. हम यह स्पष्ट करते हैं कि, भविष्य में अगर यह हमारे संज्ञान में आता है कि इन निर्देशों का किसी भी जांच समिति द्वारा पालन नहीं किया गया है, तो यह न्यायालय किसी भी जांच समिति द्वारा किए गए उल्लंघन पर गंभीरता से विचार करेगा. “
बता दें कि, हाईकोर्ट ने ठाणे निवासी भरत तायडे की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया। तायड़े के जाति प्रमाण पत्र को दूसरी बार अमान्य कर दिया गया. इससे पहले, 2016 में, एचसी ने जांच समिति को अनुसूचित जनजाति, टोकरे कोली होने के अपने दावे पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था.