सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है। इस याचिका में बिलकिस बानो ने मई में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गुजरात सरकार को 1992 के जेल नियमों के तहत 11 दोषियों की रिहाई के लिए अनुमति दी थी.
गैंगरेप पीड़िता ने एक दोषी द्वारा दायर याचिका पर शीर्ष अदालत के 13 मई के आदेश की समीक्षा की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से 9 जुलाई 1992 की नीति के तहत दोषियों की समय से पूर्व रिहाई की मांग वाली याचिका पर दो महीने के भीतर विचार करने को कहा था. गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों की सजा माफ करते हुए उन्हें 15 अगस्त को रिहा कर दिया था.
बिलकिस बानो 2002 दंगों के दौरान बलात्कार की शिकार हुई थीं और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. बानो ने पुनरीक्षण याचिका के अलावा दोषियों की सजा माफ किए जाने के फैसले को चुनौती देते हुए एक अलग याचिका दायर की थी.
इससे पहले बिलकिस बानो की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था. हालांकि कोर्ट ने नई बेंच गठित करने से इनकार किया था. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बार-बार एक ही बात का उल्लेख न करें. यह बहुत परेशान करने वाला है. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने बुधवार को सुनवाई करते हुए नई बेंच गठित करने की मांग पर यह कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.
बिल्किस बानो के वकील ने इस मामले की सुनवाई कर रहे जजों की बेंच में से एक जस्टिस बेला त्रिवेदी के बेंच से मंगलवार को बाहर निकलने के बाद उन्हें एक नई पीठ स्थापित करने पर विचार करने के लिए कहा था. इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि याचिका सूचीबद्ध किया जाएगा. कृपया बार-बार एक ही बात का उल्लेख न करें. यह बहुत परेशान करने वाला है.
क्या है पूरा मामला
2002 में गुजरात में गोधरा कांड के बाद दंगे हुए थे। इस दौरान लीमखेड़ा तहसील में बिल्किस बानो के साथ आरोपियों ने गैंगरेप किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, घटना के समय बिल्किस बानो गर्भवती थी. गैंगरेप के बाद उसकी फैमली के सात सदस्यों को मार दिया गया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. इसके बाद कोर्ट ने 2008 में मामले में सुनवाई करते हुए आरोपियों को दोषी पाया था और अजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. अलग-अलग जेल में रहने के बाद आरोपियों को गोधरा की उपजेल में रखा गया था.
आरोपियों के द्वारा 15 साल की सजा काटने के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिहाई के लिए याचिका लगाई गई थी. कोर्ट ने इनकी याचिका पर सुनवाई के बाद रिहाई के लिए मंजूरी दे दी थी. कोर्ट से स्वीकृति मिलने के बाद राज्य सरकार की माफी योजना के तहत इन्हें रिहा कर दिया गया. इस मामले पर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल और सिविल सोसायटी के संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और गुजरात सरकार की जोरदार निंदा की थी.
जिन 11 आरोपियों को जेल से छोड़ा गया है उनमें जसवंतभाई नई, गोविंदभाई नई, शैलेश भट्ट, राधेशम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं.