देश में अब राजद्रोह का केस दर्ज नहीं होगा. अंग्रेजों के जमाने के पुराने राज द्रोह कानून को लेकर बुधवार को सर्वोच्च अदालत में हो रही सुनवाई के दौैरान सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के नये केस दर्ज करने पर फिलहाल रोक लगा दी है. सर्वोच्च अदालत में इस मामले पर अब 3 जुलाई को अगली सुनवाई की जाएगी.
कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक IPC की धारा 124-ए की री-एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जाती, तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा. कोर्ट ने पहले से दर्ज मामलों में भी कार्रवाई पर रोक लगा दी है. वहीं, इस धारा में जेल में बंद आरोपी भी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं.
केंद्र सरकार ने बुधवार को 1870 में बने यानी 152 साल पुराने राजद्रोह कानून (IPC की धारा 124-ए) पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दे दी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उम्मीद है केंद्र और राज्य सरकारें बेवजह केस करने से बचेंगे. ‘किसी पर केस दर्ज हुआ तो कोर्ट जा सकते हैं. पहले से बंद लोग जमानत के लिए कोर्ट जाएं. याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने बताया कि पूरे देश में देशद्रोह के 800 से अधिक मामले दर्ज हैं. 13,000 लोग जेल में हैं.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से कहा कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किये जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर वह अपने विचारों से अवगत कराये. शीर्ष अदालत ने इस बात पर सहमति जतायी कि इस प्रावधान पर पुनर्विचार केंद्र सरकार पर छोड़ दिया जाये.
हालांकि, कोर्ट ने प्रावधान के लगातार दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की. साथ ही सुझाव भी दिया कि दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये जा सकते हैं या कानून पर पुनर्विचार की कवायद पूरी होने तक इसे स्थगित रखने का फैसला किया जा सकता है.
दरअसल, कोर्ट को यह तय करना था कि राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई तीन या पांच न्यायाधीशों की पीठ को करनी चाहिए. सर्वोच्च अदालत ने सरकार के नये रुख पर गौर किया कि वह इसकी फिर से जांच और पुनर्विचार करना चाहती है.