महाराष्ट्र की प्रमुख राजनीतिक पार्टी शिवसेना में फूट को लेकर दायर याचिकाओं पर आज फैसला नहीं हो सका है. सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त तक महाराष्ट्र संकट से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई टाल दी है. इस मामले में अदालत ने याचिकाकर्ताओं से एक अगस्त तक अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि इस मामले में चूंकि राज्यपाल भी शामिल हैं. इसलिए राज्यपाल के लिए याचिका में सम्मानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि याचिकाओं में बताये गए मुद्दों को 5 जजों की बेंच के संदर्भ की आवश्यकता पड़ सकती है। यानि की यह मामला सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के पास भेजा जा सकता है। फ़िलहाल इस मामले की सुनवाई भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना (N V Ramana) की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट की उस याचिका पर बुधवार को सुनवाई शुरू की जिसमें संवैधानिक प्रावधान के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई अयोग्यता कार्यवाही को चुनौती दी गई है। उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में था तो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को नयी सरकार को शपथ नहीं दिलानी चाहिए थी।
कपिल सिब्बल ने कहा कि जिस तरह से सरकार को गिराया गया था, वह लोकतंत्र का मजाक था। इसके साथ ही सिब्बल ने कहा कि यदि इस मामले को स्वीकार कर लिया गया तो फिर देश की हर चुनी हुई सरकार बेदखल कर दी जाएगी।
उन्होंने कहा कि यह सरकार गैरकानूनी है और इसे बने रहने का कोई हक नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आज कोई भी आदेश देने से इनकार करते हुए 1 अगस्त को अगली सुनवाई का फैसला लिया है। अदालत ने सभी पक्षों को एक सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल कर जवाब देने को कहा है।
पीठ में न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं। सिब्बल ने पीठ से कहा कि पार्टी द्वारा नामित आधिकारिक सचेतक के अलावा किसी अन्य सचेतक को विधानसभाध्यक्ष द्वारा मान्यता दिया जाना दुर्भावनापूर्ण है। प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने 11 जुलाई को उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर से कहा था कि वे उनकी अयोग्यता के अनुरोध वाली याचिका पर आगे कार्रवाई नहीं करें।
वहीं, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि लोकतंत्र में लोग एकजुट हो सकते हैं और प्रधानमंत्री से कह सकते हैं कि ‘माफ करें, आप पद पर नहीं रह सकते।’’ उन्होंने कहा कि अगर कोई नेता पार्टी के भीतर ही समर्थन (बहुमत) जुटाता है और बिना पार्टी छोड़े (नेतृत्व से) सवाल करता है तो यह दलबदल नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर पार्टी में बड़ी संख्या में लोगों को लगता है कि किसी अन्य नेता को नेतृत्व करना चाहिए, तो इसमें क्या गलत है।