शिवसेना के 40 विधायकों के साथ बगावत के बाद एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के साथ मिलकर सरकार बना ली है। मंत्रिमंडल का विस्तार भी हो चुका है। इसी बीच उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) अपनी बिखरती पार्टी को बचाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं।
उद्धव ठाकरे की यह यात्रा शिंदे सरकार को एक करारे जवाब के रूप में भी देखी जा रही है। आदित्य ठाकरे के राज्यव्यापी दौरे को शिव संवाद यात्रा का नाम दिया गया था, जबकि उद्धव ठाकरे के दौरे को ‘महाप्रबोधन’ यात्रा का नाम दिया गया है। यह यात्रा गणेशोत्सव के बाद शुरू की जाएगी। पहली जनसभा उद्धव ठाकरे, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गढ़ ठाणे शहर के टेम्भी नाका में करेंगे।
उद्धव ठाकरे पहले ही युवाओं और पुराने साथियों की सक्रिय भागीदारी के साथ पार्टी संगठन को फिर से पुनर्जीवित करने की योजना की घोषणा कर चुके हैं। टेम्भी नाका का महाराष्ट्र की राजनाति में काफी अहम स्थान है। यह वही जगह है जहां से एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरू आनंद दिघे ने शिवसेना के विकास के लिए काम किया था। अब शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए टेम्भी नाका में पहली रैली को संबोधित करेंगे।
पिछले एक महीने से शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे शिवसंवाद यात्रा के जरिए राज्य भर के बागी निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। आदित्य ठाकरे उन निर्वाचन क्षेत्रों में जा रहे हैं जहां के विधायक शिंदे गुट में शामिल हैं। आदित्य ठाकरे अपनी सभा के दौरान भीड़ से कहते हैं कि ‘देशद्रोहियों’ की न केवल शिवसेना बल्कि ठाकरे परिवार को भी खत्म करने की योजना है।
अब खुद उद्धव ठाकरे ने शिंदे को घेरने की योजना बनाई है। आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को शिवसेना सांसद राजन विचारे के साथ ठाणे में सभा आयोजित करने की जिम्मेदारी दी गई है। प्रस्तावित महाप्रबोधन यात्रा का समापन कोल्हापुर के बिंदु चौक पर होगा। शिवसेना द्वारा इस यात्रा की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब भाजपा ने नए सत्तारूढ़ शिंदे खेमे के साथ मिलकर राज्य की 45 लोकसभा सीटों और राज्य विधानसभा में 200 सीटों पर जीत हासिल करने की बात कही है।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे महाप्रबोधन यात्रा सितंबर में शुरू करेंगे। यात्रा का समापन कोल्हापुर के बिंदु चौक पर उनकी जनसभा के साथ होगा। प्रबोधन का मतलब जगाना होता है। वहीं इस यात्रा के नाम से उनके दादा के नाम का भी कनेक्शन है। इस यात्रा के जरिये उद्धव भी जनसमर्थन जुटाना चाह रहे हैं ताकि आने वाले चुनावों में उन्हें जीत हासिल हो सके। उनपर यह आरोप लगता रहा है कि वो जनता के बीच में जाने वाले नेता नहीं हैं। वहीं उनके दादाजी प्रबोधनकार ठाकरे को समाजसुधारक के रूप में जाना जाता है।