सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बड़ा फैसला देते हुए बलात्कार पीड़िताओं के मामले में टू-फिंगर टेस्ट किए जाने पर लगी रोक को कायम रखा है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की दो सदस्यीय पीठ ने ऐसा करने वालों को कदाचार का दोषी माने जाने की चेतावनी दी।
पीठ ने इस टेस्ट के जारी रहने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी हालत में यौन उत्पीड़न या रेप पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट नहीं होना चाहिए।
सेक्शुअली एक्टिव महिला का रेप नहीं हो सकता यह धारणा गलत
तेलंगाना हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ चल रहे केस पर फैसला सुनाते हुए SC ने यह टिप्पणी की। अपने फैसले में बेंच ने कहा, ‘कोर्ट ने रेप केस में टू फिंगर टेस्ट नहीं करने का आदेश कई बार दिया है। दरअसल, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह महिलाओं को बार-बार रेप के समान प्रताड़ित करने जैसा है। यह टेस्ट उस गलत धारणा पर आधारित है कि सेक्शुअली एक्टिव महिला का बलात्कार नहीं किया जा सकता है।’
अस्पतालों के लिए दिशानिर्देश जारी
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों के लिए निर्देश जारी दिया कि टेस्ट से जुड़े दिशानिर्देश सभी सरकारी व निजी अस्पतालों तक पहुंच जाएं। साथ ही हेल्थ वर्कर्स को वर्कशॉप के जरिए विक्टिम की जांच करने वाले दूसरे टेस्ट की ट्रेनिंग दी जाए, जिसका वैज्ञानिक आधार हो। इसके अलावा मेडिकल सिलेबस का रिव्यू करने की भी जरूरत है, ताकि भावी डॉक्टर्स की ओर से इस टेस्ट की सलाह न दी जाए।
क्या है टू फिंगर टेस्ट?
यह एक मैन्युअल प्रक्रिया है। इसके तहत डॉक्टर पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में एक या दो उंगली डालकर टेस्ट करते हैं कि वह वर्जिन है या नहीं। यदि उंगलियां आसानी से चली जाती हैं तो माना जाता है कि वह सेक्सुअली एक्टिव थी। इससे वहां उपस्थित हाइमन का पता भी लगाया जाता है। इस प्रक्रिया की तीखी आलोचना होती रही है। यह किसी पीड़िता की गरिमा के खिलाफ है। इसके अलावा यह अवैज्ञानिक भी है और जानकार मानते हैं कि इससे यह पता लगा पाना मुश्किल होता है कि रेप हुआ है या नहीं।