नमस्कार, नया साल कोविड-19 की वैक्सीन के रूप में आशा की नई किरण लेकर आया है। भारत में बनी वैक्सीन बीमारी के खिलाफ सुरक्षित और प्रभावी है। कोविड के विरुद्ध हमें प्रतिरोधक क्षमता देती है। भारतीय वैक्सीन पर भरोसा करें। अपनी बारी आने पर वैक्सीन जरूर लगवाएं।’ किसी को फोन लगाने पर जैसे ही यह ‘जनहित में जारी’ प्री-रेकॉर्डेड अनाउंसमेंट सुनती हूं, तो लगता है कि अब वैक्सीन लगवा ही लेनी चाहिए। हालांकि, जब भारत सरकार का को-विन ऐप पर रजिस्ट्रेशन के लिए जाती हूं, तो वहां न वैक्सीन दिखती है और न ही वैक्सीनेशन सेंटर की जानकारी, क्योंकि वैक्सीन की कमी से ज़्यादातर सेंटर बंद हो चुके हैं।
कई देशों में जहां आधी से ज़्यादा आबादी को वैक्सीन लग चुकी है, वहीं अपने देश में वैक्सीनेशन अभियान कछुआ की चाल चल रहा है। कई बार तो यह होता है कि रजिस्ट्रेशन करवाकर गए लोगों को भी सेंटर से खाली हाथ लौटना पड़ता है। वैक्सीनेशन के लिए लोग ठीक उसी प्रकार कतार में हैं, जैसे नोटबंदी के दौरान बैंक की कतार में खड़े थे। एक तरफ अगर केंद्र सरकार कह रही है कि वैक्सीन कोई कमी नहीं है। वहीं, विपक्ष पूछ रहा है कि हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दी मोदी जी? कई राज्यों की सरकारें (गैर बीजेपी) रोजाना बयान जारी कर वैक्सीन की कमी के बारे में शिकायतें करते हैं कि केंद्र सरकार वैक्सीन की कमी कर रही है। कुछ राज्य तो यहां तक कह रहे कि अब हमारे पास सिर्फ एक या दो दिन की ही वैक्सीन बची है। वहीं, मुंबई के कई वैक्सीन सेंटर बंद हो गए हैं और हालत ऐसे बन गए हैं कि छोटी-छोटी नगपालिकाओं तक को ग्लोबल टेंडर निकालने पड़ रहे हैं। खासकर मुंबई के आस-पास के इलाकों में ये टेंडर निकाले जा रहे हैं। विदेशों से भी खरीदने को तैयार हैं। क्या वाकई देश में वैक्सीन की कमी है?
केंद्र के झूठ का इससे भी पता चलता है कि दुनिया में वैक्सीन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मालिक अदर पूनावाला ने वैक्सीन को विदेश भेजने की सरकार की नीति का बचाव करते हुए कहा है कि हमने कभी भी देश के लोगों की कीमत पर वैक्सीन को विदेश नहीं भेजी। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी आबादी के लिए टीकाकरण अभियान 2-3 महीने के भीतर पूरा नहीं किया जा सकता है। दुनिया की आबादी को पूरी तरह से टीका लगने में 2-3 साल लगेंगे।
वैक्सीन को लेकर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक रोज़ वैक्सीनेशन अभियान पर सवाल खड़े कर रहे हैं और सरकार के पास सीधे तौर पर कोई जवाब नहीं है। सरकार ने 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए वैक्सीनेशन की घोषणा तो कर दी है, लेकिन जिन्होंने पहला डोज़ लिया है, वह दूसरे के लिए भटक रहे हैं। अगर वाकई कोरोना को हराना है, तो देश के गांव-गांव तक आसानी से वैक्सीन उपलब्ध कराने की ज़रूरत है, वह भी ‘मोदी लहर’ तरह, कोरोना की खतरनाक ‘लहरों’ के आने से पहले।