दुनिया में बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जिनको मां बनने का शौक भगवान की तरफ से ही प्राप्त नहीं होता है ऐसे में वे निराश हो जाते हैं परंतु सरोगेसी ऐसी ही महिलाओं के लिए वरदान है. यदि आप भी अपने जीवन में संतान का सुख प्राप्त करना चाहती हैं तो सरोगेसी के बारे में जरूर जाने और अपने जीवन में अपनाकर अपने माँ ना बन पाने वाले अभिशाप को वरदान बना ले.
हाल ही में बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा सरोगेसी से जुड़वा बच्चों की मां बन चुकी हैं. सरोगेसी मां बनने की लिस्ट में प्रीति अकेली नहीं हैं. बॉलीवुड के कई कपल इससे पहले भी सरोगेसी से पेरेंट्स बन चुके हैं. इस लिस्ट में शिल्पा शेट्टी, शाहरुख खान, आमिर खान, करण जौहर, एकता कपूर, तुषार कपूर जैसे कई स्टार शामिल हैं. आइए जानते हैं कि आखिर सरोगेसी क्या होती है.
क्या होती है सरोगेसी?
ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि बच्चा पैदा होने के लिए पति और पत्नी या कहिए कि महिला और पुरुष के बीच सेक्शुअल रिलेशन होना जरूरी होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. सरोगेसी में कोई भी शादीशुदा कपल बच्चा पैदा करने के लिए किसी महिला की कोख किराए पर ले सकता है. सरोगेसी में कोई महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए प्रेग्नेंट होती है. जो औरत अपनी कोख में दूसरे का बच्चा पालती है, वो सरोगेट मदर कहलाती है.
सरोगेट मदर बननेवाली महिला और दंपत्ति के बीच एक खास एंग्रीमेंट किया जाता है. सरोगेट मदर को प्रेग्नेंसी के दौरान अपना ध्यान रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए तो पैसे दिए जाते ही हैं, सरोगेसी के लिए वह अलग से एक अमाउंट चार्ज करती हैं.
सरोगेसी से बच्चा पैदा करने के पीछे कई वजहें हैं. जैसे कि अगर कपल के अपने बच्चे नहीं हो पा रहे हों, महिला की जान को खतरा है या फिर कोई महिला खुद बच्चा पैदा ना करना चाह रही हो.
सरोगेसी में आईवीएफ(IVF) तकनीक का इस्तेमाल होता है. IVF यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization). डॉयचे वेले की एक हेल्थ रिपोर्ट में इशा भाटिया सेनन बताती हैं कि फर्टिलाइजेशन का मतलब हुआ- पुरुष के स्पर्म और महिला के एग्स का मिलना, जिससे भ्रूण तैयार होता है. इन विट्रो का मतलब हुआ ग्लास के अंदर. यहां इसका अर्थ होगा- टेस्ट ट्यूब के अंदर. तभी तो इस तकनीक को टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से भी जाना जाता है.
सामान्यत: जो प्रक्रिया महिला के शरीर के अंदर होती है, उसे इस तकनीक में बाहर यानी लैब में किया जाता है. महिला के शरीर से एग निकाल कर सुई के जरिये उसमें स्पर्म डाला जाता है. जब भ्रूण तैयार हो जाता है तो इसे एक मेडिकल ट्यूब के जरिये भ्रूण को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है.
दो तरह की होती है सरोगेसी:
ट्रेडिशनल सरोगेस (Traditional Surrogacy)
पारंपरिक सरोगेसी में किराये पर ली गई कोख में पिता का स्पर्म महिला के एग्स से मैच कराया जाता है. इस सरोगेसी में बच्चे का जेनिटक संबंध केवल पिता से होता है.
जेस्टेशनल सरोगेसी (Gestational Surrogacy)
इस विधि में पिता का स्पर्म और मां के एग्स को मेल टेस्ट ट्यूब के जरिए सेरोगेट मदर के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है. इससे जो बच्चा पैदा होता है, उसका जेनेटिक संबंध दोनों से होता है.
इन परिस्थितियों में ली जा सकती है सरोगेसी की मदद
– जब तमाम प्रयासों और इलाज के बावजूद महिला गर्भधारण नहीं कर पा रही हों, तो सरोगेसी एक अच्छा विकल्प साबित होता है.
– जब तमाम कोशिशों और इलाज के बावजूद भी महिला का गर्भपात हो रहा हो तब सरोगेसी की मदद ली जा सकती है.
– भ्रूण आरोपण उपचार के फैल्योर के बाद सरोगेसी के जरिए बच्चा हासिल किया जा सकता है.
– गर्भाशय या श्रोणि विकार होने पर सेरोगेसी को ऑप्शन के तौर पर देखा जा सकता है.
– हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट प्रॉब्लम या अन्य गंभीर जेनेटिक स्वास्थ्य समस्याओं में भी कई बार डॉक्टर सरोगेसी का सहारा लेने की सलाह देते हैं.