‘स्किन टू स्किन’ टच मामले (Skin To Skin Judgment) में फैसला सुनाने के बाद देशभर में चर्चा में आईं बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला (Pushpa Ganediwala) ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. सूत्रों के अनुसार पुष्पा गनेडीवाला मौजूदा समय में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ (Nagpur Bench of the Bombay High Court) की अध्यक्षता कर रही थीं.
बांबे हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर 12 फरवरी को ही उनके सेवाकाल का अंतिम दिन होता, लेकिन उससे एक दिन पहले ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उनके इस्तीफे की वजह का पता नहीं चल सका है. माना जा रहा है कि अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में सेवा विस्तार नहीं मिलने और सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम में जगह नहीं मिलने के कारण उन्होंने इस्तीफा दिया है.
जस्टिस गनेडीवाला ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) को अपना इस्तीफा सौंप दिया और इसी के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (CJI N V Ramana) और बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता (Bombay HC Chief Justice Dipankar Datta) को भी एक-एक प्रति भेजा है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है.
क्या है स्किन टू स्किन टच मामला
छेड़छाड़ के एक मामले में आरोपित को जमानत देते हुए जज पुष्पा गनेडीवाला ने कहा था कि त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क नहीं हुआ है. इसलिए पाक्सो एक्ट के तहत इसे यौन हिंसा नहीं माना जा सकता. इस फैसले की देशभर में आलोचना हुई थी. बाद में इस पूरे मामले को जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में उठाया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर रोक लगा दी थी.
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इस फैसले से अपराध बढ़ेंगे और व्यभिचारियों को खुली छूट मिल जाएगी और इससे उनको सजा देना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाएगा. इस मामले में 30 सितंबर को सुनवाई पूरी हो गई थी.
इस फैसले में जज पुष्पा गनेडीवाला ने कहा था, “12 वर्ष की लड़की का स्तन दबाया जाता है. लेकिन इसकी जानकारी नहीं है कि आरोपित ने उसका टॉप हटाया था या नहीं? ना ही यह पक्का है कि उसने टॉप के अंदर हाथ डाल कर स्तन दबाया था! ऐसी सूचनाओं के अभाव में इसे यौन शोषण नहीं माना जाएगा. यह आईपीसी की धारा 354 के दायरे में ज़रूर आएगा, जो स्त्रियों की लज्जा के साथ खिलवाड़ करने के आरोप में सज़ा की बात करता है.”
इसके बाद जस्टिस गनेडीवाला का एक और फैसला आया था. उनकी अगुवाई वाली बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की एकल पीठ ने यह फैसला दिया था कि किसी लड़की का हाथ पकड़ना और आरोपित का पैंट की जिप खोलना प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज ऐक्ट, 2012 (POCSO) के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता.
मुँह दबाना, कपड़े खोलना, फिर रेप करना… अकेला युवक नहीं कर सकता
इसके अलावा जस्टिस का एक और फैसला सामने आया. ये भी रेप से जुड़ा मामला था. इस मामले में भी निचली अदालत ने 26 साल के आरोपित को रेप का दोषी पाया था, लेकिन जस्टिस पुष्पा ने उसे बरी कर दिया, जस्टिस पुष्पा ने तर्क दिया, “बिना हाथापाई किए युवती का मुँह दबाना, कपड़े उतारना और फिर रेप करना एक अकेले आदमी के लिए बेहद असंभव लगता है.”
कौन हैं जस्टिस गनेडीवाला
जस्टिस गनेडीवाला का जन्म महाराष्ट्र में अमरावती जिले के परतवाडा में तीन मार्च, 1969 को हुआ था. वह अनेक बैंकों और बीमा कंपनियों के पैनल में अधिवक्ता रही थीं. उन्हें 2007 में जिला न्यायाधीश के तौर पर सीधे नियुक्त किया गया था और 13 फरवरी, 2019 को बांबे हाई कोर्ट की अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर प्रोन्नत किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय कोलेजियम में प्रधान न्यायाधीश के साथ ही जस्टिस एनवी रमना और आरएफ नरीमन भी शामिल हैं.