पुराणों के अनुसार ‘मोक्ष’ कर्मों की पूर्ति का परिणाम होता है. हिंदू धर्म के 18 पुराणों में एक है गरुड़ पुराण है. इस पुराण में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को जीवन मृत्यु का रहस्य बताया है. इस पुराण में मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार मिलने वाले दंडों के बारे में भी बताया गया है. यह पुराण कहता है कि अपने कर्मों का परिणाम हर हाल में भोगना पड़ता है. जीवन से भगाने का प्रयास करने पर भी इनसे बच नहीं बल्कि आत्मघात के परिणाम और कष्टकारी होते हैं. आत्मघात किसी भी तरह से मोक्ष नहीं दिला सकता है. विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण ने मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करने का ज्ञान दिया ना कि आत्मघात का.
दरअसल, पुराणों के अनुसार जन्म और मृत्यु प्रकृति द्वारा पूर्वजन्म के आधार पर निर्धारित कर दी जाती है. जैसे किसी मनुष्य की आयु 50 साल निर्धारित की गई है लेकिन अगर वो जीवन से हताश होकर 30 वर्ष की आयु में ही आत्महत्या कर लेता है तो बाकी के 20 साल उसकी आत्मा मुक्ति के लिए भटकती रहती है. ऐसे में अगर उसकी कोई इच्छा अधूरी छूट गई है तो वो उसे पूरा करने के लिए उसकी आत्मा विभिन्न योनियों में भटकती रहती है.
आजकल लोगों के अंदर धैर्य खत्म हो गया है. वे विपरीत हालातों से बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं और हर हाल में समस्या का जल्द से जल्द निवारण चाहते हैं. स्थितियां उनके अनुरूप न रहें तो या तो डिप्रेशन में चले जाते हैं या आवेश में आकर आत्महत्या कर लेते हैं. लेकिन अगर आपको लगता है कि आत्महत्या कर लेने से आपका छुटकारा कष्टों से छूट जाएगा, तो आप गलत हैं.
गरुड़ पुराण में आत्महत्या करने वालों के हश्र के बारे में बताया गया है. इसे निंदनीय अपराध माना गया है और ईश्वर का अपमान बताया गया है. आत्महत्या करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद और भी बुरी दशा में पहुंच जाता है, जहां वो न तो अपनों से कोई संपर्क कर पाता है और न ही किसी लोक में कोई स्थान पाता है. जानिए आत्महत्या को लेकर और क्या कहता है गरुड़ पुराण.
अधर में लटक जाती है आत्मा
कहते हैं कि जो व्यक्ति आत्महत्या करता है उसकी आत्मा हमारे बीच ही भटकती रहती है, न ही उसे स्वर्ग/नर्क में जाने को मिलता है न ही वह जीवन में पुन: आ पाती है. ऐसे में आत्मा अधर में लटक जाती है. ऐसे आत्मा को तब तक ठिकाना नहीं मिलता जब तक उनका समय चक्र पूर्ण नहीं हो जाता है. इसीलिए आत्महत्या करने के बाद जो जीवन होता है वो ज्यादा कष्टकारी होता है.
पिशाच बन भटकती है आत्मा
यदि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की कोई इच्छा अधूरी रह गई है या वो गहरे तनाव के कारण ऐसा कर रहा है, तो ऐसी आत्मा को नया शरीर मिल जाना और भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में परेशान या अतृप्त आत्मा भूत, प्रेत या पिशाच योनि धारण कर भटकती रहती है. ये भटकाव तब तक रहता है, जब तक कि उनके मृत शरीर की निर्धारित आयु पूरी नहीं हो जाती. ऐसे में श्राद्ध, तर्पण और धार्मिक कार्य भी आसानी से आत्मा को भटकाव से मुक्ति नहीं दिला पाते.
किसे कहते हैं भूत : जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है. अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है. जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है. जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है. आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं. जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं. यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं.
अतृप्त आत्माएं बनती है भूत : जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है. और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भूत बनकर भटकता है. ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं.
आत्महत्या के बाद भी मिलता है नया जीवन : हिंदू धर्म अनुसार आत्महत्या करने के बाद भी व्यक्ति को जल्द ही दूसरा जन्म मिल सकता है लेकिन शर्त यह है कि उस व्यक्ति ने अपने जीवन में अच्छे कर्म किए हो और उसकी कोई इच्छा नहीं रही हो। ऐसा शांत चित्त व्यक्ति भी अपने अगले जीवन की यात्रा पर निकल सकता है. हालांकि उसे अपनी देह की उम्र का समय सूक्षात्मा के रूप में रहकर ही भूगतना होता है. लेकिन यहां यह स्पष्ट कर देना उचित है कि ऐसे व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता. मोक्ष तो जन्म और मरण से मुक्त होकर अपने आनंदस्वरूप में स्थित होना होता है.
आत्महत्या के परिणामों से मुक्ति के उपाय : गुरूड़ पुराण में आत्महत्या के कारणों से मृत आत्मा की शांति हेतु कई उपाय बताए गए हैं. इसमें मृत आत्मा हेतु तर्पण करना, सद्कर्म करना (दान, पुण्य और गीता पाठ), पिंडदान करना, मृत आत्मा की अधूरी इच्छा को पूर्ण करना प्रमुख है. यह कार्य कम से कम तीन वर्ष तक चलने चाहिए तभी मृत आत्मा को मुक्ति मिलती है. तर्पण करने, धूप देने आदि से मृत आत्माएं तृप्त होती है। तृप्त और संतुष्ट आत्माएं ही दूसरा शरीर धारण कर सकती है या वैकुंठ जा सकने में समर्थ हो पाती है.