त्योहारी मौसम के बावजूद भी ‘सराफा बाजार’ शांत
लॉकडाउन, कीमतों में वृद्धि, कारीगरों का पलायन
कोरोना काल के झटके से नहीं उबरा बुलियन मार्केट
ज्वेलरी शॉप में खरीदने से ज्यादा बेचने वालों की भीड़
मुंबई-भारतीय संस्कृति में त्योहारों के अवसर पर नई वस्तुओं, वस्त्रों, आभूषणों, घरों, वाहनों आदि के खरीदने की परंपरा है. वैश्विक महामारी कोरोना के चलते मार्च से जारी लॉकडाउन के दौरान सोने की बढ़ती कीमतों और आम आदमी की गिरती आर्थिक स्थिति ने बाजारों से ग्राहकों को लगभग गायब कर दिया है। मार्च महीने में 38,000 प्रति दस ग्राम की कीमत वाला सोना इस समय लगभग 52,000 के आसपास है. इसके कारण सोने और चांदी के आभूषणों की बिक्री में काफी गिरावट आई है। इससे सराफा बाजार में त्योहारी मौसम के बावजूद भी शांति का माहौल दिखाई दे रहा है. अनेक जगह ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए सराफा व्यापारियों द्वारा आकर्षक ऑफर दिया जा रहा है लेकिन तंगहाल ग्राहक दालरोटी को प्राथमिकता दे रहा है। कई दुकानदारों द्वारा पहचान वाले विश्वसनीय ग्राहकों को सोना किस्तों में बेचा जा रहा है, लेकिन अधिकांश जगह आदमी खरीदने के बजाए बेचने आ रहा है.
सरकार ने लॉकडाउन को अनलॉक करते हुए सभी दुकानों को खोलने की अनुमति दी है, लेकिन सराफा बाजार में अभी भी रौनक देखने को नहीं मिल रही है. व्यापारियों के अनुसार इसके कई कारण हैं। जो कारीगर और शिल्पकार सराफा व्यापारियों के आभूषण बनाने का काम करते थे, वे मुख्य रूप से कलकत्ता, पश्चिम बंगाल के हैं. रेलवे की पर्याप्त सेवाओं के अभाव में अभी तक वापस नहीं लौटे हैं। इसका सबसे बड़ा झटका सराफा बाजार पर पड़ रहा है। आभूषणों को लेकर ग्राहकों में नाराजगी भी है. जिन ग्राहकों द्वारा एडवांस देकर गहने बुक किए गए थे, कारीगरों की कमी के कारण आठ महीने बाद भी नहीं बनाए जा सके हैं. इसलिए ग्राहकों को समय पर डिलीवरी नहीं दिया जा सका। मार्च से अक्टूबर तक के आठ महीनों में सोने की कीमतें भी तेजी से लगभग 32 प्रतिशत बढ़ीं हैं। दशहरा और दिवाली के दौरान ग्राहक दस दिन पहले से सोना खरीदना शुरू कर देते थे, लेकिन सराफा व्यापारियों की अधिकांश दुकानें माल और ग्राहकी के अभाव में अस्त-व्यस्त हैं। कुछ कारोबारियों का पहले से जमा जमाया व्यवसाय है, उनका धंधा पुराने ग्राहकों पर आधारित है. पहले के मुकाबले आज का कारोबार पचास प्रतिशत भी नहीं है.