“पापा”
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
दुनिया के काबिल मुझको बनाया,
आपका ऋणी है मेरा जीवन
आपको पापा शत शत नमन ।
गलती होने पर मुझे समझाया
कभी प्यार तो कभी गुस्सा दिखाया,
नाराज़ हुआ तो गले से लगाया
भूलकर सारी कहा सुनी अनबन ।
आपको पापा……………………
कभी जो मुझ पर मुश्किल आयी
आपने मुझसे दूर भगायी,
पूरी करी ज़िद और माँगें मेरी
रहे कमी में पर रखा मुझे सम्पन्न ।
आपको पापा……………………
बस यही आशीष मैं माँगू आपसे
पहचान रहे मेरी आपके नाम से,
मान रखूँ मैं सदा आपके मान का
है दिन रात मेरा बस यही प्रयत्न ।
आपको पापा..……………………
अब जब मैं भी पिता बना हूँ
जो किया आपने अब समझा हूँ,
अल्लाह, जीसस, राम को भूला
आप ही हैं बस मेरे भगवन ।
आपको पापा…………………….
- डॉ निशीथ चन्द्र