मुंबई। रखरखाव के अभाव में ऐतिहासिक अर्नला किला अस्त-व्यस्त दिखाई दे रहा है। इस किले का स्थानीय लोगों द्वारा मछली सुखाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। इसके चलते किले में आने वाले पर्यटकों को न केवल इसकी बदबू का सामना करना पड़ रहा है बल्कि ऐतिहासिक विरासत वाले किले का वजूद खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है।
गौरतलब हो कि विरार पश्चिम में अर्नाला सागर तट पर स्थित अर्नला किला पेशवा काल का है। पेशवाओं ने 1737 में पुर्तगालियों से द्वीप पर कब्जा करने के बाद इसका निर्माण किया गया था. बाद में पेशवाओं ने शंकरजी पंत फड़के के माध्यम से अर्नला द्वीप पर किले का पुनर्निर्माण किया था। लगभग 700 वर्ग फुट में फैले किले के प्राचीर की ऊंचाई लगभग 25 से 30 फीट है। भैरव, भवानी और बावा किले के प्राचीर में तीन गढ़ हैं.
यहां त्र्यंबकेश्वर और भवानी देवी के मंदिर भी स्थापित किए गए हैं। इस किले को देखने के लिए देश विदेश के विद्वान और पर्यटक आते हैं। रखरखाव की कमी के कारण किले का वास्तु खराब हो रहा है। गांव के मछुआरे मछली को सुखाने के लिए किले का उपयोग कर रहे हैं। किले के आंगन में और गढ़ पर मछलियों को सुखाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। किले में आने वाले इतिहासकार और पर्यटक इससे परेशान हैं। पर्यटकों ने शिकायत की है कि यह किला जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है और किले का महत्व कम हो रहा है।
निर्देशों की अनदेखी
उल्लेखनीय है कि अर्नाला किला पुरातत्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। अर्नाला किला गांव के सरपंच चंद्रकांत मेहर ने कहा कि ग्राम पंचायत ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रयास कर रही है। हम बार-बार नागरिकों को किले की पवित्रता को बनाए रखने की अपील कर रहे हैं। इसके बाद भी मछली सुखाया जा रहा है।