कभी-कभी सिरदर्द व चक्कर आने जैसी समस्याओं को हम मामूली समझकर टालने लगते हैं। लेकिन हम यह नहीं सोचते कि इसकी वजह शायद जानलेवा भी हो सकती है। कई केसों में इसका कारण होता है- एन्यूरिज्म (Aneurysm)। दरअसल, मस्तिष्क की रक्त नलिका में सूजन को एन्यूिरज्म (Aneurysm) के नाम से जाना जाता है। यह सूजी हुई नलिका फट सकती है और उससे मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है।
एक शोध अघ्ययन के अनुसार आबादी के 3 से 5 प्रतिशत तक के हिस्से के मस्तिष्क में ऐसी सूजी हुई नलिका मौजूद रहा करती है और 20 मस्तिष्क आघातों में से एक इसी सूजी हुई नस के फटने की वजह से होता है।
पिछले कुछ समय से ऐसे शोध व अध्ययन किए जा रहे थे जिससे ब्रेन हेमरेज (Brain Haemorrhage) के मरीजों को जल्द से जल्द राहत मिल सके और उनकी जान को अधिक जोखिम न रहे। हाल ही के शोधों से यह पता चलता है कि पुरानी तकनीक जैसे सर्जिकल क्लिपिंग की अपेक्षा यह नई तकनीक अधिक बेहतर है। लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश में जानकारी के अभाव में कई मरीजों को संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ता है क्योंकि इस क्षेत्र में अभी बहुत ही कम विशेषज्ञ हैं
आम तौर पर यह एन्यूिरज्म का आघात 40-50 की उम्र के बीच हुआ करता है, जिसे जीवन में उम्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। दरअसल दूसरी तरह के आघातों से यह अलग है क्योंकि यह अपेक्षाकृत कम उम्र में हमला बोलता है और सेरेब्रल इनफारक्सन या इंट्रासेेरेब्रल आघात के समान जानलेवा साबित हो सकता है। लगभग 30 प्रतिशत मरीज तो शुरूआती रक्त स्राव को भी सहन नहीं कर पाते जब कि प्रारंभिक हमला झेल जाने वाले मरीजों में से भी 50 प्रतिशत से अधिक एक महीने से अधिक जिंदा नहीं रह पाते क्योंकि एन्यूरिज्म कभी भी फट सकता है।
अन्य आघात मस्तिष्क से होने वाले रक्त स्राव के कारण होते हैं। इन आघातों से जिनकी जान बच जाती है वे भी ऐसी विकलांगता का शिकार हो जाया करते हैं और अपनी सामान्य दिनचर्या भी सही तरीके से नहीं निभा पाते। मस्तिष्क आघात मृत्यु और विकलांगता का तीसरा सबसे सामान्य कारण होता है।
भारत में बढ़ती हुई आबादी, बदलती हुई जीवनशैली मसलन शहरीकरण, धूम्रपान, नमक या शराब का सेवन, तनाव और शारीरिक गतिविधियों की कमी की वजह से पक्षाघात का खतरा लगातार ही बढ़ता चला जा रहा है। कई बार इसके लक्षणों को पहचानने में तथा इलाज में देरी और भी खतरनाक बना देती है। हालांकि इसके कई उपचार मौजूद हैं लेकिन सबकी अपनी कुछ सीमाएं हैं।
इसके अलावा हमारे देश में हेल्थ केयर की जो पद्धति है, वह ब्रेन हैमरेज के मामले को जटिल और चुनौतीपूर्ण बना देती है. एन्यूिरज्म के इलाज करने की पारंपरिक विधि ओपन सर्जरी ‘क्लिपिंग’ रही है। लेकिन इस विधि में मस्तिष्क पेरेनसाइमा के चोटग्रस्त हो जाने का बहुत अधिक खतरा रहता है। लेकिन एंडोवेस्कुलर कामाध्यम अपनाए जाने पर इस तरह का कोई खतरा नहीं रहता है।
पैरों की धमनियों के रास्ते से एक सूक्ष्म ट्यूूब यानी माइक्रोकेथेटर को वहां ले जाया जाता है और उससे क्षतिग्रस्त हिस्से को बंद कर दिया जाता है। यह ‘क्वायलिंग’ के नाम से जाना जाता है। इस प्रक्रिया को अपनाए जाने का एक बड़ा फायदा यह है कि इससे मस्तिष्क को कम से कम नुकसान पहुंचता है और इसके परिणाम भी अपेक्षाकृत बेहतर आ रहे हैं।