शोधों से यह पता चलता है कि कई लोग सिर्फ स्लिप्ड डिस्क के कारण ही भयानक दर्द व तकलीफ का सामना करते हैं। वास्तव में हमारी रीढ़ की हड्डी के कारण ही हम सीधा चल पाते हैं। कभी-कभी अपने सामथ्र्य से अधिक बोझ उठाने के कारण भी हम स्लिप्ड डिस्क को न्यौता दे बैठते हैं। इससे हमारी कमर, गर्दन व हिप्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर में सुन्नपन या पैरालिसिस (लकवा)भी इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं। कई मरीज तो बार-बार बेहोश होने की भी शिकायत करते है।
दरअसल स्प्लिड डिस्क एक ऐसी बीमारी है, जिसे समझने के लिए रीढ़ के बनावट के बारे में जानना जरूरी है। हमारी रीढ़ की हड्डी प्राय: 33 हड्डियों के जोड़ से बनती है और प्रत्येक दो हड्डियां आगे की तरफ एक डिस्क के द्वारा और पीछे की तरफ दो जोड़ों के द्वारा जुड़ी रहती है। यह डिस्क प्राय: रबड़ की तरह होती है जो इन हड्डियों को जोडऩे के साथ-साथ उनको लचीलापन प्रदान करती है। कई बार व्यायाम व दवाइयां भी बहुत मददगार साबित होती हैं। यदि मरीज को अत्यधिक पीड़ा हो तो 2-3 दिन तक बेड रेस्ट करने की सलाह दी जाती है। ऐसी अवस्था तब उत्पन्न होती है जब डिस्क का अंदरूनी भाग बाहर की तरफ झुकने लगता है। स्लिप्ड डिस्क के लक्षण इस पर निर्भर करता है कि डिस्क का झुकाव कितना हुआ है।
नसों में एक अजीब प्रकार का खिंचाव व झनझनाहट स्लिप्ड डिस्क का एक बड़ा लक्षण है। यह झनझनाहट पूरी नस में दर्द उत्पन्न करती है, जो कि अति कष्टदायक होता है। इसके अलावा प्रभावित जगह पर सूजन होना भी इस दर्द को और अधिक जटिल बना देता है। वैसे तो स्लिप्ड डिस्क के ऐसे कम ही केस होते हैं जहां पर सर्जरी करनी पड़ती है। लेकिन व्यायाम या दवाइयां जहां कारगर नहीं होती हैं वहां सर्जरी करना आवष्यक हो जाता है। डिस्क से जुड़े भाग जो कि बाहर की तरफ आने लगते हैं उन्हें ठीक करना इस सर्जरी का लक्ष्य होता है। इस प्रक्रिया को डिस्केटोमी के नाम से जाना जाता है। लेकिन सर्जरी का भी सर्वश्रेष्ठ विकल्प हैं-इंडोस्कोपिक लेजर डिस्केटोमी।
डिसक्टोमी को विभिन्न तरीके से अंजाम दिया जा सकता है। ओपेन डिसेक्टोमी वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत स्लिप्ड डिस्क के एक भाग अथवा खिसक गए संपूर्ण डिस्क को ही हटा दिया जाता है। इसमें स्पाइन में चीरा लगाकर डिस्क को हटाया जाता है। यह प्रक्रिया जनरल एनेसथिसिया के अधीन पूरी की जाती है। मरीज बेहोशी की स्थिति में होने के कारण दर्द महसूस नहीं करता। एक अध्ययन के अनुसार 87 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इस तरह के ऑपरेशन के तीन महीने बाद उनकी हालत पूरी तरह सुधर गई। इस शल्य चिकित्सा के अंतर्गत स्पाइन तक पहुंच कायम करने के लिए एक बहुत ही छोटा चीरा लगाया जाता है। डिस्क को देखने के लिए इंडोस्कोप की सहायता ली जाती है। यह एक पतली, लंबी ओर लोचदार होती है जिसके एक किनारे पर प्रकाश स्रोत और कैमरा लगा होता है। एनेस्थिसिया लोकल हो अथवा जनरल यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्लिप्ड डिस्क आपके स्पाइन में कहां है। चीरा लगाकर इंडोस्कोप से देखते हुए उस तंत्रिका को मुक्त कर दिया जाता है जिसके कारण दर्द हो रहा था। इसके बाद लेजर की सहायता से खिसक गए डिस्क को हटा दिया जाता है।
एक अध्ययन के अनुसार इंडोस्कोपिक लेजर सर्जरी के 6 महीने बाद अधिकांश लोग आराम से चलने-फिरने में समर्थ हो गए। अधिकतर लोगों को उसके बाद दवा की जरूरत नहीं पड़ी। एक अन्य अध्ययन के अनुसार औसतन सप्ताह बाद लोग अपनी दिनचर्या फिर से शुरू करने लायक हो गए।