कोई भी व्यक्ति हर वक्त एक जैसे मूड में नहीं रह सकता है. इंसान का मूड समय समय पर बदलना नेचुरल है. लेकिन जब कोई इंसान लंबे समय तक, यानि कि कई दिनों तक, महीनों तक या सालों तक उदास रहे तो इस स्थिति को मेडिकल भाषा मेंं डिप्रेशन (Depression) कहते हैं. यह एक ऐसी मानसिक बीमारी है जिसकी चपेट में किसी भी उम्र का व्यक्ति आ सकता है. डिप्रेशन 60 साल की उम्र से अधिक के व्यक्ति को भी हो सकता है और एक 3 साल के बच्चे को भी हो सकता है.
डिप्रेशन एक मानसिक समस्या है. जो आपकी सोच और जीवन देखने के नजरिये को एकदम बदल देती है. आपके अंदर सकारात्मकता की कमी होने लगती है और आप उदासी व दुख में फंसते जाते हैं. ताजा अध्ययन (Study) में खुलासा हुआ है कि भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिप्रेशन और चिंता की ज्यादा शिकार होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनियाभर में अवसाद (Depression) सबसे सामान्य बीमारी है और दुनियाभर में लगभग 35 करोड़ लोग अवसाद से प्रभावित होते हैं.
डिप्रेशन के प्रमुख कारण
महिलाओं की जीवनशैली ऐसी है कि उन पर डिप्रेशन का खतरा मंडराता रहता है. कई ऐसे कारण हैं जो महिलाओं को डिप्रेशन का शिकार बनाते हैं. ये कारण कुछ ऐसे हैं जिन्हें सिर्फ एक महिला ही महसूस कर सकती है. जैसे कि जेंडर बेस्ड वॉइलेंस, समाज में बराबरी का दर्जा न मिलना, सेलेरी में अंतर, सामाजिक और पारिवारिक दबाव, लो सोशल स्टेटस और रैंक, सुपर वूमेन बनने की होड़, काम के साथ परिवार की जिम्मेदारी और अपनी पर्सनल समस्याएं आदि महिलाओं में बढ़ते डिप्रेशन का कारण बन रही है. हालांकि वक्त से साथ हालात सुधरे हैं, महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं, उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है, फिर भी डिप्रेशन का खतरा उनमें अधिक है.
मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं : मासिक धर्म (Menstrual Cycle) को लेकर आज भी समाज के एक बड़े हिस्से में खुलकर बात नहीं होती है. नतीजा, इससे जुड़ी सभी परेशानियां लड़की या महिला को खुद ही झेलना पड़ती हैं. यही कारण है कि वह चिंता और डिप्रेशन से घिर जाती हैं. यह स्थिति उन्हें शारीरिक के साथ ही भावनात्मक रूप से भी कमजोर कर देती है. उनमें चिड़चिड़ापन और थकान महसूस होती है.
गर्भावस्था और डिलीवरी के दौरान : गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान महिलाओं के मन में तरह-तरह के विचार आते हैं और वे डिप्रेशन में चली जाती हैं. इसी कारण कई बार महिला प्रेगनेंसी के दौरान बेहोश हो जाती है. यही स्थिति डिलीवरी के दौरान भी बनती है. जिन महिलाओं को मोटापा और अन्य बीमारियां होती हैं, उनमें इसका खतरा अधिक होता है. मां बनने के बाद शुरुआती हफ्तों में महिलाएं भावनाओं के रोलर कोस्टर से गुजरती हैं. इसे बेबी ब्लूज कहते हैं.
डायस्टियमिया : डायस्टियमिया (Dysthymia) डिप्रेशन का वह रूप है जो लंबे समय तक रहता है. यह कामकाजी महिलाओं में कम और गृहिणियों में ज्यादा पाया जाता है. महिलाएं उदास रहती हैं. उनकी नींद कम हो जाती है, हमेशा थकान रहती है और आत्मविश्वास डगमगाया हुआ रहता है. ऐसी महिलाएं ही आत्महत्या अधिक करती हैं.
डिप्रेशन के लक्षण नज़र आए तो क्या करें
– चाहे कोई भी मानसिक रोग हो, उसके लक्षण व्यक्ति के स्वभाव में दिखने लगते हैं. इसलिए जरूरी है कि अपने शरीर में दिखने वाले हर छोटे से छोटे परिवर्तन पर नजर रखें और नोटिस करते ही तुंरत किसी अच्छे मानसिक डॉक्टर से संपर्क करें.
– अपने दिमाग में उठ रहे विचारों या जीवन में आ रही समस्याओं के बारे दोस्त या परिवार के किसी सदस्य से खुलकर बात करें. हो सकता है आसानी से समाधान निकल जाएं और आप चिंतामुक्त हो जाएं.
– ऐसी चीजों से या लोगों से दूर रहें जिनसे आपको नेगेटिव फीलिंग आती हो.
– दिनभर में अपने लिए थोड़ा सा समय निकालकर कोई ऐसा काम करें जिससे आपको खुशी मिले.
– योग और प्राणायाम शुरू कर दें. इससे दिमागी मजबूती मिलेगी.
– अगर लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं तो डॉक्टर को दिखाएं. दवाओं से भी डिप्रेशन का इलाज संभव है.