” मोबाइल “
तन्त्र यन्त्र की आँधी आई
साथ में अपने मोबाइल लाई,
मानव पर ऐसा कसा शिकंजा
इसने रिश्तों में तबाही मचाई।।
महामारी सा फैल गया है
दिल में इसके ना दया मया है,
और आते जाते संदेशों में
मर गयी सारी शर्मोहया है।
वक़्त भी अब बीमार हुआ है
थक हार के लाचार हुआ है,
कीमत भी इसकी शून्य हुई है
इसको मोबाइल ने मार दिया है।
उठा के गर्दन नभ को देखो
हटा मोबाइल सब को देखो,
बहुत ख़ूब हैं ये प्यारे रिश्ते
इन्हें तो अपनी नज़र से देखो।
जो दुरुपयोग रुका ना इसका
तो जल्दी ही वो दिन आयेगा,
मोबाइल बन बैठेगा मानव
मानव मोबाइल कहलायेगा।
डॉ. निशीथ चन्द्र
9821872432