कोरोना के संकट काल से,बॉम्बे हाईकोर्ट ने राहत देने से किया इनकार
मुंबई-एक महत्वपूर्ण मामले में रविवार को बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के आयुध कारखाना में कार्यरत 10 उम्मीदवारों को सोमवार 5 अक्टूबर को होने वाली भर्ती परीक्षा की अर्हता पूरी नहीं कर पाने पर राहत देने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी ने दुर्लभ घटना के तहत रविवार सुबह मामले की सुनवाई की. याचिकाकर्ताओं ने इसे अत्यावश्यक बताया था। मामले की सुनवाई में पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता अर्हता पूरी नहीं करते हैं इसलिए वह उनकी मदद नहीं कर सकती है। महेश बाल्के और नौ अन्य याचिकाकर्ता महाराष्ट्र के एक आयुध काराखाने में कुशल कर्मी हैं. उन्होंने चार्जमैन (टेक्नीकल) पद के लिए आवेदन किया था, जिसके लिए आयुध कारखाना बोर्ड ने इस साल मई-20 में विज्ञापन दिया था।
भर्ती विज्ञापन के मुताबिक आवेदन जमा करने की अंतिम तारीख 15 जून थी और आवेदक को आवेदन करने की अंतिम तारीख तक मैकेनिकल या सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा उत्तीर्ण होना था। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि वे सभी एआईसीटीई से संबद्ध विभिन्न महाविद्यालयों में इन डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के छात्र हैं। इस पाठ्यक्रमों की अंतिम परीक्षा अप्रैल-मई 20 में होनी थी और जून में परिणाम आने थे, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से अंतिम परीक्षा में देरी हुई और अबतक परीक्षा नहीं हो पाई है। याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) में भी अर्जी दी थी और परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी थी। कैट ने भी पिछले महीने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया था। इसके बाद अभ्यर्थियों ने बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और परीक्षा में शामिल होने की अनुमति देने का अनुरोध किया। उनका तर्क था कि डिप्लोमा पाठ्यक्रम की अंतिम परीक्षा में हुई देरी में उनकी गलती नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को भर्ती अधिसूचना और अर्हता को चुनौती देनी चाहिए। अदालत ने कहा कि क्या याचिकाकर्ताओं ने इस बात को चुनौती दी है कि अंतिम वर्ष के छात्रों, जिनके नतीजे लंबित हैं, को आवेदन करने की अनुमति नहीं दी गई है। पीठ ने आगे कहा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला है जिसके अनुसार अगर आवेदन की अंतिम तारीख तक उम्मीदवार अर्हता नहीं रखता है, जो इस मामले में 15 जून है, तो नियोक्ता उनके आवेदन पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमें आपसे पूरी सहानुभूति है, जैसा आपने अपनी याचिका में कहा कि चार साल में एक बार इस पद पर भर्ती का मौका मिलता है लेकिन उच्चतम न्यायालय का फैसला हमारे सामने है।