उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में भगदड़ मच गई है. पिछले कुछ दिनों में योगी सरकार के 3 मंत्रियों समेत 14 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है. आने वाले दिनों में ये संख्या और अधिक बढ़ने की उम्मीद है.
अधिकतर नेताओं का जमावड़ा समाजवादी पार्टी (सपा) में होने जा रहा है. खास बात यह है कि इस्तीफा देने वाले अधिकतर विधायक ओबीसी समुदाय से आते हैं और स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थक हैं. गुरुवार को इस्तीफा देने वाले धर्म सिंह सैनी ने तो दावा किया है कि 20 जनवरी तक हर दिन एक मंत्री बीजेपी छोड़ने जा रहा है.
इन नेताओं ने छोड़ा है साथ
स्वामी प्रसाद मौर्य, भगवती सागर, रोशनलाल वर्मा, विनय शाक्य, अवतार सिंह भाड़ाना, दारा सिंह चौहान, बृजेश प्रजापति, मुकेश वर्मा, राकेश राठौर, जय चौबे, माधुरी वर्मा, आर के शर्मा, बाला अवस्थी, धर्म सिंह
माना जा रहा है कि जो लोग भाजपा को छोड़कर गए हैं, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली स्वामी प्रसाद मौर्य हैं. पांच बार के विधायक और कभी मायावती के बेहद खास रहे स्वामी प्रसाद का कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी समुदाय पर अच्छा प्रभाव माना जाता है. मौर्य और कुशवाहा सबसे प्रमुख पिछड़ी जातियां हैं. पूर्वांचल और अवध के जिलों में इनकी अच्छी आबादी है.
स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी की भी अपने-अपने क्षेत्रों में ओबीसी वोटर्स के बीच अच्छी पकड़ है. यूपी की आबादी में ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी है.
2017 में बीजेपी को मिला था ओबीसी मतदाताओं का साथ
भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली थी और पार्टी आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे में पहली बार 300 से अधिक सीटें जीतने में कामयाब रही थी. उस समय के नतीजों का विश्लेषण बताता है कि कभी ‘अगड़ों और बनियों’ की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी को सभी समुदायों का वोट मिला था.
2017 के चुनाव से पहले बीजेपी बड़ी संख्या में बसपा और सपा के ओबीसी नेताओं को जोड़ने में कामयाब रही थी और पार्टी को इसका फायदा भी हुआ था. गैर यादव ओबीसी वोटरों को लामबंद करने में भगवा दल को सफलता मिली थी. इसका श्रेय काफी हद तक स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी जैसे नेताओं को दिया गया और योगी कैबिनेट में इन्हें जगह भी दी गई.