बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने माओवादियों से कथित संबंधों से जुड़े मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा और पांच अन्य को शुक्रवार को बरी कर दिया और उन्हें जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया.
न्यायमूर्ति रोहित देव और न्यायमूर्ति अनिल पानसरे की खंडपीठ ने साईबाबा को दोषी करार देने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के निचली अदालत के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका स्वीकार कर ली.
पांच साल पहले महाराष्ट्र की एक लोअर कोर्ट ने माओवादी से लिंक मामले में उन्हें और अन्य पांच को दोषी ठहराया था. कोर्ट ने उन सभी को UAPA के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई थी. जिसके खिलाफ साईंबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
हाईकोर्ट ने मामले में पांच अन्य दोषियों महेश तिर्की, पांडु नरोटे, हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय एन. तिर्की को भी बरी कर दिया है. पांच आरोपियों में से एक पांडु नरोटे की डेढ़ महीने पहले मौत हो गई थी. वह 33 साल के थे और उन्हें स्वाइन फ्लू था. उनके वकीलों ने नागपुर सेंट्रल जेल पर समय पर हेल्थ सुविधा नहीं देने का आरोप लगाया था. कोर्ट ने इस सभी को तत्काल रिहा करने के आदेश दिए, जब तक वे किसी अन्य मामलों में आरोपी न हो.
साईबाबा की पत्नी वसंता कुमारी के मुताबिक, साईबाबा ह्रदय और किडनी रोग समेत कई अन्य रोगों से ग्रस्त हैं. साईबाबा 90 फीसदी विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर चलते हैं.
बता दें महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने मार्च 2017 में साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित अन्य को माओवादियों से कथित संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने का दोषी ठहराया था.
अदालत ने साईबाबा और अन्य को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी करार दिया था.