पूर्णिमा मेले में हुई एक हजार गधों की बिक्री
मुंबई। कोरोना काल के चलते श्रीक्षेत्र जेजुरी में खंडोबा की पौष पूर्णिमा यात्रा को रद्द कर दिया गया था, लेकिन हर साल की तरह इस साल पूर्णिमा यात्रा के लिए लगने वाला गधा बाजार पारंपरिक रूप से भरा हुआ था। इस मेले में लगभग एक हजार गधे बेचे गए। हालांकि इस बार महाराष्ट्र के इस प्रसिद्ध गधा बाजार में मंदी देखी गयी।
गौरतलब हो कि बाजार में बिक्री के लिए गधे बड़ी संख्या में आए, लेकिन व्यापारियों की कम संख्या होने के कारण गधों की खरीदी-विक्री का कारोबार कम हो गया। गांव के गधों की कीमत 10,000 रुपये से 20,000 रुपये रही, जबकि काटूवाड़ी के गधों की कीमत 20,000 से 55,000 रुपये तक रही। इस मेले में गुजरात के 100 काटेवाड़ी गधे बेचे गए। पिछले चार दिनों से बंगाली पतंगाना में गधे का बाजार भरा हुआ है।
इस दौरान लगभग एक हजार गधे खरीदे और बेचे गए. जिसके चलते डेढ़ से दो करोड़ का कारोबार हुआ। मेले में महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र और अन्य राज्यों से व्यापारी आए थे। गधों की घटती संख्या से बाजार प्रभावित हो रहा है। पुणे में गधे के दूध का कारोबार चलाने वाले रमेश जाधव ने 15,000 रुपये में एक डेयरी गधी खरीदी। जाधव पूरे साल गधे की डेयरी व्यवसाय चलाते हैं। गधी के दूध की कीमत 2,000 रुपये प्रति लीटर है और इसे कई बीमारियों में कारगर बताया जाता है।
गधों का महत्व अभी भी बना हुआ है
आधुनिक मशीनरी का उपयोग पत्थरों, मिट्टी, बजरी, रेत, सीमेंट की थैलियों और भारी सामग्री के परिवहन के लिए किया जाता है, लेकिन गधों का महत्व कम नहीं हुआ है। गधे अभी भी ऊँची पहाड़ियों, कठिन स्थानों पर, ईंट भट्टों पर उपयोग किए जाते हैं। कत्थवाड़ी नस्ल के गधों की उच्च शक्ति के कारण, वे एक बार में 50 से 60 किलोग्राम का भार उठा सकते हैं, इसलिए उनकी उच्च मांग हैं।