महाराष्ट्र के सतारा जिले की महाबलेश्वर (Mahabaleshwar) स्थित गुफाओं में निपाह वायरस (Nipah Virus) का पता चला है. महाबलेश्वर के जंगलों में एक गुफा के अंदर रहने वाले चमगादड़ों (Bats) में निपाह वायरस की मौजूदगी की पुष्टि हुई है. इस बात से महाबलेश्वर के स्थानीय लोग परेशान है.
महाबलेश्वर (Mahabaleshwar) को भारत में मिनी कश्मीर भी कहा जाता है। हर वर्ष वहां पर हजारों की संख्या में सैलानी पहुंचते हैं। बता दें कि ऐसा पहली बार हुआ है कि महाराष्ट्र में इस तरह से इस वायरस की पुष्टि चमगादड़ों में हुई है। इस पुष्टि के बाद सतारा जिले के महाबलेश्वर-पंचगनी के पर्यटन स्थलों को फिलहाल बंद कर दिया गया है।
ये वायरस मुख्यत: चमगादड़ से फैलता है। गौरतलब है कि जो चमगादड़ फल खाते हैं उनकी लार फलों पर ही रह जाती है। ऐसे में जब कोई भी अन्य जानवर या व्यक्ति इन फलों को खाता है तो वो इससे संक्रमित हो जाता है। ये वायरस सबसे अधिक नुकसान दिमाग को पहुंचता है।
वर्ष 2020 में पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) ने महाबलेश्वर की गुफा से चमगादड़ों की लार के नमूने लिए थे। इनकी जांच के दौरान ही इसमें निपाह वायरस (Nipah Virus) मिलने की पुष्टि हुई है। वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व डॉ. प्रज्ञा यादव कर रही थीं. डॉ. प्रज्ञा यादव के अनुसार, इससे पहले निपाह वायरस महाराष्ट्र के किसी भी चमगादड़ में नहीं मिला था. निपाह वायरस अगर इंसानों में फैलता है तो जानलेवा हो सकता है. निपाह वायरस का अभी तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है, इसलिए मृत्यु का जोखिम 65 से 100 प्रतिशत है.
बता दें कि ये कोई नया वायरस नहीं है ओर पूर्व में इसके संक्रमण को रोका जा चुका है। वर्ष 2018 में निपाह वायरस की वजह से केरल में 17 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि, इस वायरस से संक्रमित करीब 75 फीसद मरीजों की मौत हो जाती है इसलिए ही इसको एक डेडली वायरस कहा जाता है। मौजूदा समय में भी इसकी कोई दवा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन जानकारों की राय में बचाव ही इसका एक उपाय है।
विश्व में इस वायरस का सबसे पहला मामला मलेशिया के कम्पंग सुंगाई गांव में सामने आया था। इस वजह से इस गांव के नाम के आगे ही निपाह जुड़ गया था। इसके बाद सिंगापुर में इसका पहला मामला सामने आया था। निपाह वायरस डब्ल्यूएचओ के शीर्ष दस वायरस में शामिल है। भारत में वर्ष 2001 और वर्ष 2004 में बांग्लादेश में भी इसके मामले सामने आए थे।