लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के 7 दिन बीत चुके हैं। इस मामले में पुलिस की कार्रवाई का आगे का रुख क्या होगा यह तो समय बताएगा, लेकिन अब तक पुलिस की तरफ से हुई लापरवाहियां गुनाहगारों को सजा से बचाने के लिए काफी साबित हो सकती हैं। जिन सबूतों को कोर्ट में पेश कर गुनाहगारों को सजा दिलानी है, उन्हें दो दिन तक भीड़ रौंदती रही और पुलिस नेताओं को रोकने में व्यस्त रही। शायद इन्हीं वजहों से कोर्ट ने भी हिदायत दी है कि सबूतों की सुरक्षा सही ढंग से की जाए।
पुलिस ने यह पता लगाने की कोशिश भी नहीं की कि केंद्रीय मंत्री के आरोपी बेटे आशीष के पास कितने फोन हैं। पुलिस विभाग के ही अधिकारियों का कहना है कि अपराधी को सजा दिलाने में मौका-ए-वारदात से जुटाए गए सबूत सबसे अहम होते हैं। हालांकि, इतनी बड़ी घटना में पुलिस ने उसी की अनदेखी कर दी। अफसरों का कहना है कि घटना को अंजाम देने के बाद वारदात करने वाला जल्दी से जल्दी घटनास्थल से भागना चाहता है। हड़बड़ी में वह कुछ न कुछ ऐसा छोड़ जाता है जो उसकी पहचान के लिए साक्ष्य बन जाता है।
किसी भी घटना की सूचना पर पुलिस जल्दी से जल्दी पहुंचने की कोशिश करती है ताकि उसे घटनास्थल से ऐसे सबूत हाथ लग सकें, लेकिन इतनी बड़ी हिंसा के दो दिन बाद पुलिस ने घटनास्थल को कब्जे में लेकर साक्ष्य जुटाने शुरू किए। तब तक बहुत सारे फॉरेंसिक सबूतों के मिट चुकने की संभावना भी बनी हुई है।
रिटायर्ड पुलिस अफसरों का कहना है कि क्राइम सीन रिक्रिएट करने का मकसद यह पता लगाना होता है कि घटना किस तरह हुई होगी? इसकी रिपोर्ट भी साक्ष्य के तौर पर कोर्ट में पेश की जाती है। इसलिए जरूरी होता है कि रिक्रिएशन बिल्कुल उसी तरह और वैसी ही परिस्थितियों में किया जाए, जो घटना को संभावित करते हों। लखीमपुर हिंसा में दोपहर में हुई घटना का रिक्रिएशन पुलिस ने रात में किया। बहुत कम संभावना है कि कोर्ट इस रिक्रिएशन को एक्सेप्ट करेगी।