फ्रांस में हाल ही में एक फ्रांसीसी टीचर की गला काटकर हत्या कर दी गयी थी। टीचर के मुसलमान छात्र के पिता ने कक्षा में पैगम्बर के कार्टून दिखाए जाने से नाराज होकर, टीचर को मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना से फ्रांस की जनता में आक्रोश का माहौल उत्पन्न हो गया। काफी लोग शिक्षक को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतर आये थे। इसी कारण से फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने दुनिया भर में इस्लाम को संकट में बताया। इसके साथ ही दिसंबर में एक बिल पेश करने की कसम खाई जिससे कि फ्रांस में आधिकारिक तौर पर चर्च और राज्य को अलग करने वाले कानून को मजबूत किया जा सके। उनके इस बयान से तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने मैक्रॉन के मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल उठाते हुए उनकी आलोचना की है। साथ ही कई देशों के मुसलमानों ने फ्रांस के बहिष्कार की मांग की। बीते दो दिनों में मैक्रॉन के खिलाफ अपनी दूसरी तीखी आलोचना करते हुए एर्दोगन ने कहा कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने अपना दिमाग खो दिया है, जिससे फ्रांस के विदेश मंत्री को अंकारा में देश के राजदूत को वापस बुलाने के लिए प्रेरित किया गया।
दुनिया भर में इस्लाम को संकट में बताए जाने के बाद शुक्रवार से, सोशल मीडिया पर पश्चिम से पूर्व की ओर यूके, कुवैत, कतर, फिलिस्तीन, मिस्र, अल्जीरिया, जॉर्डन, सऊदी अरब और तुर्की सहित देशों में मैक्रोन की आलोचना काफी तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर हैशटैग #BoycottFrenchProducts और #Islam और #NeverTheProphet के तहत लोग अपनी भावनाएं शेयर कर रहे हैं। वहीं ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने ट्वीट करते हुए मुस्लमानों को घृणा का प्राथमिक शिकार बताया है। इसके साथ ही चरमपंथियों की ओर से किए जा रहे मुस्लिमों और उनकी पवित्रताओं का अपमान करने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक अवसरवादी दुरुपयोग बताया है। सारे मुस्लिम देश फ्रांस के खिलाफ एक जुट हो रहे हैं साथ ही उनकी धार्मिक कट्टरता भी बढ़ रही है। किसी भी धर्म में धार्मिक कट्टरता का यूँ बढ़ना देश और समाज के लिए अहितकारक सिद्ध हो सकता है। बता दें कि तुर्की और पाकिस्तान के आपसी संबंध भारत के साथ भी सही नहीं है। भारत के आपसी मुद्दों में इन देशों का हस्तक्षेप अधिक होता है।
– गायत्री साहू