कई दिनों के तनाव व आशंकाओं के बाद आखिरकार रूस व यूक्रेन के बीच आज जंग छिड़ ही गई। इस युद्ध ने यूरोप में महायुद्ध व तीसरे विश्व के हालात पैदा कर दिए हैं। रूस ने यूक्रेन को तीन तरफ से घेरकर पांच शहरों पर बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया।
खबरों में सामने आया है कि यूक्रेन ने भी रूस के पांच सैनिक जहाजों को मार गिराया है। यूक्रेन के एक एयरबेस पर भी रूस ने धावा बोला है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर इस विवाद की जड़ क्या है? सोवियत संघ के जमाने में कभी मित्र रहे ये प्रांत दो देश बनने के बाद एक दूसरे के शत्रु क्यों बन गए हैं?
1991 में सोवियत संघ से आजाद हुआ था यूक्रेन
यूक्रेन पहले सोवियत संघ का हिस्सा था। 1 दिसंबर 1991 को यहां जनमत संग्रह हुआ, जिसमें 90 फीसदी लोगों ने यूक्रेन को अलग करने के पक्ष में वोट दिया। अगले दिन रूस के निवर्तमान राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन (Boris Yeltsin) ने यूक्रेन को एक अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी। तब क्रीमिया (Crimea) को भी यूक्रेन में शामिल रखा गया था।
2008 में नाटो में शामिल होने का प्लान
2008 में यूक्रेन के NATO में शामिल होने की बात चली। अमेरिका ने इसका समर्थन किया। लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर (Vladimir putin) पुतिन इसके विरोध में आ गए। इसके बाद NATO ने जॉर्जिया और यूक्रेन को शामिल करने का ऐलान किया। लेकिन रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया और 4 दिन में ही उसके दो इलाकों पर कब्जा कर लिया। हालांकि, 2010 में राष्ट्रपति चुने गए विक्टर यानुकोविच ने यूक्रेन के NATO में शामिल होने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
2019 के चुनाव में यूक्रेन में वोलोदिमीर जेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) राष्ट्रपति चुने गए। NATO में शामिल होने की कोशिशें एक बार फिर तेज कर दीं। यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की कोशिशें देखते ही रूस भी प्लानिंग में जुट गया। नवंबर 2021 में सैटेलाइट तस्वीरों में यूक्रेन की सीमा पर रशियन आर्मी नजर आई। तब से दोनों देशों के बीच कोल्ड वार जारी था, जो आखिरकार युद्ध में तब्दील हो गया।
यूक्रेन के NATO में शामिल होने को माना जा रहा वजह
रूस और यूक्रेन के बीच हुए इस विनाशकारी युद्ध की जड़ नॉर्थ अटलांकि ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) को माना जा रहा है। यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन रूस को लगता है कि यदि ऐसा हुआ तो नाटो देशों के सैनिक ठिकाने उसकी सीमा के पास आकर खड़े हो जाएंगे। यही नहीं, यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो सभी देश उसकी सुरक्षा के लिए तैयार रहेंगे।
जानिए पूरा मामला
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव नवंबर 2013 में तब शुरू हुआ जब यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच (Viktor Yanukovych) का कीव में विरोध शुरू हुआ। जबकि उन्हें रूस का समर्थन था। यानुकोविच को अमेरिका-ब्रिटेन समर्थित प्रदर्शनकारियों के विरोध के कारण फरवरी 2014 में देश छोड़कर भागना पड़ा।
इससे खफा होकर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। इसके बाद वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया। इन अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया।
2014 के बाद से रूस समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच डोनबास प्रांत में संघर्ष चल रहा था। इससे पहले जब 1991 में यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ था तब भी कई बार क्रीमिया को लेकर दोनों देशों में टकराव हुआ।
2014 के बाद रूस व यूक्रेन में लगातार तनाव व टकराव को रोकने व शांति कायम कराने के लिए पश्चिमी देशों ने पहल की। फ्रांस और जर्मनी ने 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में दोनों के बीच शांति व संघर्ष विराम का समझौता कराया।
हाल ही में यूक्रेन ने नाटो से करीबी व दोस्ती गांठना शुरू किया। यूक्रेन के नाटो से अच्छे रिश्ते हैं। 1949 में तत्कालीन सोवियत संघ से निपटने के लिए नाटो यानी ‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ बनाया गया था। यूक्रेन की नाटो से करीबी रूस को नागवार गुजरने लगी।
अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं। यदि कोई देश किसी तीसरे देश पर हमला करता है तो नाटो के सभी सदस्य देश एकजुट होकर उसका मुकाबला करते हैं। रूस चाहता है कि नाटो अपना विस्तार न करे। राष्ट्रपति पुतिन इसी मांग को लेकर यूक्रेन व पश्चिमी देशों पर दबाव डाल रहे थे।
आखिरकार रूस ने अमेरिका व अन्य देशों की पाबंदियों की परवाह किए बगैर गुरुवार को यूक्रेन पर हमला बोल दिया। अब यदि नाटो ने रूस पर जवाबी कार्रवाई की और योरप के अन्य देश इस जंग में कूदे तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा बढ़ जाएगा।