पुणे। भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान बोर्ड ने मोडी लिपि में लिखे गए दुर्लभ दस्तावेजों और पुस्तकों को डिजिटलाइज़ करने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है। मंडल के संग्रह में एक मिलियन से अधिक मोडी स्क्रिप्ट दस्तावेज़ और 30,000 पुस्तकें हैं।
भारतीय इतिहास अनुसंधान बोर्ड की 111वीं वर्षगांठ, बुधवार सात जुलाई को मनाई गई। बोर्ड के सचिव पांडुरंग बालकवड़े ने बताया कि जयंती के अवसर पर विश्वकोश निर्माण मंडल के अध्यक्ष डॉ. राजा दीक्षित को वरिष्ठ इतिहास शोधकर्ता के लिए सरदार आबासाहेब मुजुमदार पुरस्कार दिया गया।
बालकवड़े ने कहा कि बोर्ड के पास मोडी लिपि में दस लाख से अधिक दस्तावेज, 30,000 किताबें और इतिहास पर 40,000 संदर्भ पुस्तकें हैं। जिसमें से 12 हजार किताबों को डिजीटल और लिस्ट कर दिया गया है। अब राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के माध्यम से दुर्लभ दस्तावेजों और ग्रंथों का डिजिटलीकरण कर रहे हैं।
बोर्ड के पास 30,000 लघु चित्रों का संग्रह है। एक उद्यमी के आर्थिक सहयोग से मंडल के राजवाड़े हॉल का जीर्णोद्धार किया जाएगा। बोर्ड के इतिहास शोधकर्ता संदीप भिसे के मार्गदर्शन में दो साल पहले बोर्ड कार्यालय स्थापित करने का काम शुरू किया गया था। यह काम एक महीने में पूरा होने वाला है।
जनता के लिए आजीवन सदस्यता
भारतीय इतिहास में अनुसंधान बोर्ड ने तीन दशकों के बाद आम लोगों के लिए आजीवन सदस्यता की शुरुआत की है। 30 साल पहले आजीवन सदस्यता के लिए शुल्क 5,000 रुपये था। बोर्ड के कार्य को अधिक जनोन्मुखी बनाने तथा अधिक से अधिक युवाओं को इतिहास अध्ययन की धारा में भाग लेने के उद्देश्य से आजीवन सदस्यता शुल्क में कोई वृद्धि नहीं की गई है। नतीजतन साढ़े पांच सौ लोग बोर्ड के सदस्य बन गए हैं। जबकि 30 साल पहले बोर्ड में साढ़े चार सौ आजीवन सदस्य थे।