पिछले दिनों ‘पत्रकारिता का इतिहास’ विषय की पढ़ाई करते समय ‘सोशल मीडिया’ के विषय पर भी चर्चा हुई कि कैसे हम पर्चों, अख़बारों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो और टीवी युग से होते हुए आज सोशल मीडिया के दौर में पहुँच गए हैं। सोशल मीडिया के प्रभाव से कोई अछूता नहीं रहा। अब तो सरकारों का बनना-बिगड़ना भी सोशल मीडिया के रोल के बिना असंभव लगता है। सोशल मीडिया हमारी जिंदगी का एक ऐसा सक्रिय हिस्सा बन गया है जिसे अब चाहते हुए भी दरकिनार करना मुश्किल है। आजकल बड़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी स्मार्टफोन के बहाने सोशल मीडिया के प्रभाव में हैं। लेकिन सोशल मीडिया का बच्चों पर मिश्रित प्रभाव देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया की मदद से कई मुद्दों पर बच्चों की बेहतर विचारधारा विकसित करने में मदद हो सकती है बशर्ते उसका सही इस्तेमाल सिखाया जाए। सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल करते हुए उनके संचार और संवाद कौशल को बेहतर किया जा सकता है। बच्चों को रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करने में भी सोशल मीडिया का अच्छा प्रभाव हो सकता है। ऐसे बच्चे अपनी बात और विचारों को आसानी से व्यक्त कर पाते हैं। बच्चों का तकनीकी और व्यवहारिक ज्ञान बढ़ाने में भी सोशल मीडिया की मदद ली जा सकती है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों का मन बहुत नाजुक और चंचल होता है ऐसे में सोशल मीडिया आसानी से उनकी सोच और व्यवहार को बदल सकता है। अक्सर सोशल मीडिया पर ऐसी स्थितियां बन जाती हैं या बना दी जाती हैं कि यही बच्चे निगरानी न होने के कारण अश्लील, हानिकारक या आक्रामक सामग्री परोसने वाली वेबसाइटों तक पहुँच जाते हैं। इन वेबसाइट के प्रभाव से उनकी सोचने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय बिताने के कारण बच्चे इसकी लत लगा लेते हैं जिसका नकारात्मक असर बच्चों पर पड़ता है। सोशल मीडिया की लत का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। ऐसे में अभिभावकों को बच्चों की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। अगर बच्चा सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रयोग में शामिल है तो उसे प्रेरित करें लेकिन अगर उसकी लत लगती दिखाई दे तो तुरंत सक्रिय होकर उसका मार्गदर्शन करें। सोशल मीडिया को लेकर अभिभावकों को इसीलिए अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।