चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों में सबकुछ फ्री (freebies) देने की होड़ मची रहती है और इस कारण देश के कई राज्य बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं.
देश के कई शीर्ष नौकरशाहों ने चेतावनी दी है कि अगर इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगी तो ये राज्य श्रीलंका (Sri Lanka) और यूनान (Greece) की तरह कंगाल हो जाएंगे. प्रधानमंत्री के साथ पिछले हफ्ते शनिवार को करीब चार घंटे तक चली बैठक में कुछ सचिवों ने इस बारे में खुलकर बात की और इस बारे में अपनी चिंता जताई.
उनका कहना था कि कुछ राज्य सरकारों की लोकलुभावन घोषणाओं और योजनाओं को लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता. अगर इन पर रोक नहीं लगी तो इससे राज्य आर्थिक रूप से बदहाल हो जाएंगे. उनका कहना है कि लोकलुभावन घोषणाओं और राज्यों की राजकोषीय स्थिति के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं होता है तो इन राज्यों का श्रीलंका या यूनान जैसा हाल हो सकता है.
किन राज्यों पर है ज्यादा कर्ज
जिन राज्यों पर कर्ज का बोझ सबसे ज्यादा है उनमें पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इन राज्यों की लोकलुभावन घोषणाओं की वजह से इनकी वित्तीय सेहत खराब हो चुकी है. इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की घोषणा की है. कई राज्य मुफ्त बिजली दे रहे हैं जो सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा रहे हैं. भाजपा ने भी उत्तर प्रदेश और गोवा में मुफ्त रसोई गैस देने के साथ ही दूसरी कई लुभावनी घोषणाएं चुनाव में की थीं जिसे पूरे करने का वादा किया गया है.
राज्यों पर कितना है कर्ज
विभिन्न राज्यों के बजट अनुमानों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में सभी राज्यों का कर्ज का कुल बोझ 15 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है. राज्यों का औसत कर्ज उनके जीडीपी के 31.3 फीसदी पर पहुंच गया है. इसी तरह सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा के 17 वर्ष के उच्च स्तर 4.2 फीसदी पर पहुंच गया है. वित्त वर्ष 2021-22में कर्ज और जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) का अनुपात सबसे ज्यादा पंजाब का 53.3 फीसदी रहा.