- कहा, आरएसएस सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हटा
- हमने मोहन भागवत से बात की, लेकिन आरएसएस अब उस पर कायम नहीं
नई दिल्ली, 04 सितंबर । जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि आरएसएस हिन्दुस्तान में हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति, एकता, प्रेम और सद्भाव को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता से पीछे हट गया है। देश में नफरत के माहौल और मुसलमानों को नूंह और अन्य स्थानों पर सामूहिक बदले का निशाना बनाए जाने पर उन्होंने कहा कि आरएसएस के नेताओं के बयानों से स्पष्ट है कि वो सांप्रदायिक सौहार्द नहीं चाहते।
मीडिया से बातचीत में मौलाना मदनी ने कहा कि देश में आपसी समझ-बूझ और भ्रम को समाप्त करने के लिए उनकी मोहन भागवत से जो बात हुई थी, आरएसएस उस पर अब क़ायम नहीं रहा। उन्होंने हर हिन्दुस्तानी के हिंदू होने के बयान को भी निर्रथक बताया। उन्होंने कहा कि हर हिन्दुस्तानी ‘हिंदू’ नहीं, बल्कि भारतीय है।
अध्यक्ष जमीअत उलम-ए-हिंद ने गठबंधन ‘इंडिया’ का भी पूर्ण समर्थन करते हुए कहा कि देश में नफरत के माहौल की समाप्ति के लिए राजनीतिक बदलाव आवशयक है। अगर विपक्षी दल एकजुट नहीं रहे, तो स्वयं उनका अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह कर्नाटक में सांप्रदायिक शक्तियों को हराया गया, उसी तरह इसकी राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी जरूरत है। उन्होंने हरियाणा के नूंह दंगों में रेहड़ी पटरी और ठेला लगाने वाले 200 पीड़ितों के लिए 40 लाख रुपये की सहायता राशि का चेक जारी किया, जिससे लाभान्वित होने वाले मुसलमान के साथ-साथ हिन्दू भी हैं।
इस अवसर पर मौलाना मदनी ने कहा कि हमें बताया गया कि रेहड़ी-ठेला सात हज़ार रुपये में और बेचने के लिए सामान पर चार से पांच हज़ार रुपये खर्च होते हैं, परन्तु हमने फैसला किया कि हर प्रभावित को प्रति व्यक्ति बीस हज़ार रुपये दिए जाएं। मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद ने सबके लिए अपना हाथ आगे बढ़ाने, समय पर सहायता पहुंचाने और उनके जख्मों पर मरहम रखने को अपना कर्तव्य समझा। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमने नूंह में भी इस परंपरा को बरकरार रखा और प्रभावितों की धर्म और वर्ग के भेदभाव के बिना सहायता की जा रही है।
अध्यक्ष जमीअत उलमा ने एक बार फिर कहा कि सांप्रदायिक तत्व यह समझते हैं कि दंगों के जरिये मुसलमानों को नुकसान पहुंचाएंगे, लेकिन वह यह नहीं समझते कि इससे देश का नुकसान होता है। नूंह में 28 अगस्त को कड़ी सुरक्षा में पुनः यात्रा निकाली गई, लेकिन कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। उन्होंने मांग की कि दंगा रोकने के लिए पुलिस और प्रशासन को उत्तरदायी बनाया जाए। मौलाना मदनी ने कहा कि इस सिलसिले में कभी प्रभावी क़दम नहीं उठाया गया, जिसके कारण सांप्रदायिक तत्वों को बल मिलता रहा, जिन्हें अब कानून और न्यायालय का भी कोई डर नहीं रह गया।