सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा से 12 भाजपा विधायकों के एक साल के निलंबन को असंवैधानिक करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि एक सत्र से ज्यादा का निलंबन सदन के अधिकार में नहीं आता है. विधायकों का निलंबन सिर्फ उसी सत्र के लिए हो सकता है, जिसमें हंगामा हुआ है. इसके साथ ही अदालत ने विधायकों के निलंबन को रद्द कर दिया. बता दें कि पीठासीन अधिकारी के साथ कथित रूप से दुर्व्यवहार करने के आरोप में विधायकों को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया था.
जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने यह फैसला सुनाया. सुनवाई के दौरान बेंच ने मौखिक रूप से कहा था कि यह निलंबन अनुपातहीन था और ‘बर्खास्त होने से भी बुरा था.’ अगर यह बर्खास्तगी का मामला है कि यह रिक्त जगह भरने के लिए उप-चुनाव कराए जा सकते हैं.
बेंच ने कहा था कि सत्र की अवधि से लंबे निलंबन किसी क्षेत्र के लिए सजा के बराबर है, क्योंकि उस दौरान सदन में क्षेत्र का प्रतिनिधि नहीं होता है. बेंच ने यह भी कहा था कि यह ‘लोकतंत्र के लिए खतरनाक’ हो सकता है.
बेंच ने कहा था कि नियमों के अनुसार, सदन के पास किसी सदस्य को 60 दिनों से ज्यादा निलंबित करने की शक्ति नहीं है. इस संबंध में पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 190(4) का जिक्र किया था, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई सदस्य बगैर सदन की अनुमति के 60 दिनों के लिए गायब रहता है, तो सीट को खाली माना जाएगा.
महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील आर्यम सुंदरम ने शुरुआत में कहा था कि सदन के अंदर हुई कार्यवाही पर न्यायिक समीक्षा की इजाजत नहीं है. निलंबित विधायकों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, महेश जेठमलानी, सिद्धार्थ भटनागर, नीरज किशन कौल पेश हुए थे.
कौन-कौन थे निलंबित?
गौरतलब है कि निलंबित 12 विधायकों में संजय कुटे, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भटकलकर, पराग अलवानी, हरीश पिंपले, योगेश सागर, जय कुमार रावत, नारायण कुचे, राम सतपुते और बंटी भांगड़िया थे.