सिफारिशी कर्मियों को नहीं मिला बोनस
स्टेट बैंक का निर्णय, यूनियन के साथ समझौता
‘प्रमोशन’ एवं ‘ट्रांसफर’ में राजनीतिक दखल पर रोक
सहकारी बैंकों पर भी पड़ेगा दूरगामी असर
मुंबई-भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अपने उन अधिकारियों और कर्मचारियों को दिवाली का बोनस नहीं देने का फैसला किया है, जो स्थानान्तरण या पदोन्नति के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप का उपयोग करते हैं. साथ ही उन्हें भी बोनस से वंचित रखा गया है जिनकी पूरे वर्ष में 65 प्रतिशत से कम उपस्थिति रही है। बैंक के मुख्य प्रशासक विद्याधर अनास्कर ने मुंबई में बताया कि इस आशय का एक समझौता शुक्रवार को बैंक के मुख्य प्रशासक और यूनियन पदाधिकारियों के बीच हुआ है. पात्र पाए गए कर्मचारियों के लिए इस वर्ष 12 प्रतिशत धनराशि बोनस के रूप में देने की घोषणा की गई।
गौरतलब हो कि राज्य मध्यवर्ती सहकारी बैंक की राज्य भर में अनेक शाखाएं हैं. जबकि मुंबई, नागपुर, पुणे, औरंगाबाद, नाशिक और वाशी में छह ट्रेड यूनियन हैं। बैंक पिछले तीन वर्षों से लगभग 800 अधिकारियों और कर्मचारियों को बोनस (सानुग्रह राशि) प्रदान करता आ रहा है।
राज्य में सहकारी बैंक राजनीति का केंद्र बिंदु हैं, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के नेता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बैंक के मामलों में हस्तक्षेप करते हैं। चूंकि बैंक के अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी भी किसी न किसी राजनीतिक दल या नेता के संपर्क में हैं, इसलिए ये कर्मचारी या तो स्थानांतरण या पदोन्नति के लिए बैंक के प्रबंधन पर अनुचित सलाह देते हैं या दबाव डालते हैं।कभी-कभी तो नेता और संगठन प्रशासन पर उन लोगों को परेशान करने के लिए दबाव डालते हैं जो उनके राजनीतिक विरोधी हैं।
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने बैंक के मामलों में इस बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए हैं. इसी के तहत बैंक सेवा में राजनीतिक दखल का प्रयोग करने वाले कर्मचारियों को बोनस नहीं देने का फैसला किया गया है।
बैंक और यूनियन के बीच समझौता
बैंक के प्रशासक मंडल और संघ के अधिकारियों के बीच बैठक में तय किया गया कि जो कर्मचारी ट्रांसफर या प्रमोशन के लिए राजनेताओं की मौखिक या लिखित सिफारिश लाकर प्रबंधन पर दबाव डालता है, उसे उस वर्ष के लिए बोनस नहीं मिलेगा। इसी तरह पिछले वित्तीय वर्ष में जिन कर्मचारियों की बैंक के कुल कार्य दिवसों में से 65% से कम उपस्थिति है, उन्हें भी बोनस लाभ से वंचित रखा जाएगा। बैंक के नए नियमों को ट्रेड यूनियनों ने मंजूरी दे दी है, जिससे अब बैंक के मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप कम हो जाएगा। राज्य के सभी सहकारी बैंकों की स्थिति कमोबेश एक जैसी है. इस फैसले से अन्य बैंकों को अपने मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप कम करने में मदद मिलेगी।