मुंबई। मनपा द्वारा संचालित टीबी (तपेदिक) और कुष्ठ सर्वेक्षण में 485 टीबी मरीजों का इलाज किया गया. कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य प्रणाली के व्यस्त रहने कारण टीबी मरीजों का समय पर निदान नहीं हो सका था जिसके चलते मामले बढ़ गए थे. जैसे ही कोरोना का असर कम हुआ स्वास्थ्य विभाग द्वारा अभियान चलाकर कुल 485 तपेदिक रोगियों का इलाज किया गया। इस जांच अभियान में 15 नए कुष्ठ रोगी पाए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में तपेदिक रोगियों की संख्या तीन गुना हो गई है, लेकिन कुष्ठ रोगियों की संख्या में गिरावट आई है।
गौरतलब हो कि कुष्ठ और तपेदिक रोगियों के निदान के लिए हर साल डोर-टू-डोर सर्वेक्षण किया जाता है। इस साल 1 से 24 दिसंबर तक सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण के अनुसार 9547 संदिग्ध टीबी रोगियों की पहचान की गई है, जिनमें से 485 टीबी रोगियों का निदान किया गया है। पिछले साल अभियान में 170 टीबी रोगियों का निदान किया गया था।
इस वर्ष रोगियों की संख्या में तिगुनी वृद्धि का कारण बताते हुए मनपा के तपेदिक विभाग की प्रमुख डॉ. प्रणिता टिपारे ने कहा कि लॉकडाउन के कारण स्वास्थ्य केंद्र कोरोना के लिए काम कर रहा था, इसलिए परीक्षण भी सीमित हो रहे थे। सर्वेक्षण में पाया गया कि कई लोग डर से चेकअप के लिए नहीं आए, क्योंकि कोरोना और तपेदिक के लक्षण समान थे। संदिग्धों के परीक्षण चल रहे हैं और पीड़ितों की संख्या बढ़ने की संभावना है।
सर्वेक्षण के दौरान 1697 संदिग्ध कुष्ठ रोगी पाए गए जिसमें से 15 लोगों का निदान किया गया। मल्टीबेसिलरी की श्रेणी में 10 और पॉसिबैसिलरी की श्रेणी में पांच मरीज हैं। अधिकांश मरीज आर साउथ (कांदिवली पश्चिम) और अन्य मरीज आर सेंट्रल (बोरिवली वेस्ट), एल (कुर्ला पश्चिम) में पाए गए।
मुंबई में बढ़ा मच्छरों का प्रकोप
मुंबई में मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। विशेषकर उन इलाको में जहां खुले नाले हैं और कचरा जमा है। गंदे नालो में पानी जमा होने से बड़े पैमाने पर मच्छर पैदा हो रहे हैं। मच्छर फैलने के बावजूद राहत भरी बात है की इन मच्छरों से डेंगी और मलेरिया नहीं फैलेगा। यह क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर हैं, जो ठंडी में बड़ी संख्या में पैदा होते हैं। इनकी लाइफ दो से तीन हफ्ते की होती है।
मच्छरों से निपटने के लिए मनपा फॉगिंग व दवाओं का छिड़काव कर रही है। मनपा के पेस्टीसाइड ऑफिसर राजन नरिंगेकर ने बताया कि इस मौसम के मच्छर ज्यादा खतरनाक नहीं होते हैं। केवल ठंड के मौसम की वजह से बड़ी संख्या में पैदा होते हैं। क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छरों के काटने से फाइलेरिया होता है।