संसद का शीतकालीन सत्र शुरु हो गया है और पहले दिन संसद में महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जारी सीमा विवाद का मुद्दा भी गूंजा. एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने लोकसभा के शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप की मांग की है. सुले ने कहा कि महाराष्ट्र को तोड़ने की साजिश की जा रही है. केंद्र इस मामले में हस्तक्षेप करे. हालांकि, शून्यकाल में मुद्दा उठाने पर कर्नाटक के सांसदों ने विरोध करते हुए बताया कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है.
एनसीपी नेता ने कहा कि पिछले दस दिनों में महाराष्ट्र में एक नया विवाद शुरू हो गया है. हमारे पड़ोसी राज्य कर्नाटक के मुख्यमंत्री बकवास कर रहे हैं. कल महाराष्ट्र के कुछ लोग कर्नाटक जाना चाहते थे लेकिन उनपर हमला किया गया.
उन्होंने महाराष्ट्र के खिलाफ साजिश का आरोप लगाते हुए कहा कि कर्नाटक के सीएम महाराष्ट्र को तोड़ने की बात कर रहे हैं. सुप्रिया सुले ने कहा कि दोनों ही राज्य बीजेपी द्वारा शासित हैं. महाराष्ट्र के लोगों को कल पीटा गया. इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए, यह एक देश है. उन्होंने इस मुद्दे पर गृह मंत्री अमित शाह से इंटरवेंशन की मांग की.
सुप्रिया सुले के बयान पर बीजेपी सांसद शिवशंकर उदासी ने कहा कि महाराष्ट्र के विपक्षी नेता हेबिचुअल ऑफेंडर्स हैं, यह उनकी असरुक्षा है. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और बीजेपी सांसद ने कहा कि तबतक विपक्ष को इस मुद्दे पर बात करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.
निचले सदन में बहस में शामिल होते हुए शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के सांसद विनायक राउत ने कहा कि जिस तरह से कर्नाटक सरकार मराठी भाषी लोगों पर अत्याचार कर रही है वह अन्याय है. उन्होंने कहा कि वे मंत्रियों को आने से रोक रहे हैं! यह अन्याय है और महाराष्ट्र के लोगों के खिलाफ है. हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं.
इस बीच स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि भले ही यह संवेदनशील मुद्दा है और यह दो राज्यों के बीच का मामला है. उन्होंने विपक्ष से पूछा कि यह संसद है, इस मामले में केंद्र क्या करेगा?
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, महाराष्ट्र और कर्नाटक एक दूसरे के कुछ गांवों को अपना बताते हुए दावा कर रहे हैं. 1957 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह मुद्दा अब कई दशक बाद हिंसक मोड़ ले रहा है. महाराष्ट्र ने मराठा भाषी क्षेत्र बेलगावी, जोकि कर्नाटक में है, पर अपना दावा किया है. बेलगावी, तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, यहां मराठी बोलने वाली आबादी की बहुलता है. महाराष्ट्र ने 814 मराठी भाषी गांवों पर अपना दावा किया है जो अभी दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में है. उधर, कर्नाटक ने भी महाराष्ट्र के कई गांवों पर अपना अधिकार बताते हुए दावा किया है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. हालांकि, राज्य पुनर्गठन अधिनियम और 1967 महाजन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भाषाई आधार पर किए गए सीमांकन को अंतिम माना जाता रहा है.