नई दिल्ली, 20 जून । सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा मामले पर जल्द सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सूबे में हिंसा की ताजा घटनाओं के मद्देनजर वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली अवकाशकालीन बेंच से जल्द सुनवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि सुरक्षा के आश्वासन के बावजूद 70 आदिवासियों की हत्या हो चुकी है। उनको सेना की सुरक्षा की जरूरत है। कोर्ट ही आखिरी उम्मीद है।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जमीन पर हालात नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा एजेसियां लगी हैं। तब कोर्ट ने कहा कि ये कानून व्यवस्था से जुड़ा गम्भीर मसला है, पर सेना बुलाने जैसा कदम उठाने के लिए सरकार को कोर्ट के दखल की जरूरत नहीं है। हम गर्मी की छुट्टियों के बाद तीन जुलाई को ही सुनवाई करेंगे।
मणिपुर ट्राईबल फोरम ने दायर याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार ने कोर्ट में जो आश्वासन दिया था वो झूठा था। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार मणिपुर के मामले पर गंभीर नहीं है। मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 17 मई को जो पिछली सुनवाई हुई थी उसके बाद से कुकी समुदाय के 81 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है औऱ 31,410 कुकी विस्थापित हो चुके हैं। इस हिंसा में 237 चर्चों और 73 प्रशासनिक आवासों को जला किया गया है। इसके अलावा करीब 141 गांवों को नष्ट कर दिया गया है।
केंद्र सरकार और मणिपुर राज्य सरकार ने 17 मई को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि हिंसा काबू में आ चुकी है। हाई कोर्ट ने मैतई समुदाय को जनजाति (एसटी) का दर्जा देने का जो आदेश दिया था, उसके लिए भी राज्य सरकार को हाई कोर्ट ने एक साल का समय दे दिया था। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया था कि सरकार से जुड़े लोग किसी समुदाय के खिलाफ बयान न दें।
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पहले से दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई और दूसरी याचिका मणिपुर ट्राईबल फोरम ने दायर की है। भाजपा विधायक गंगमेई की ओर से दायर याचिका में मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है।
मणिपुर ट्राईबल फोरम की ओर से दाखिल दूसरी याचिका में मांग की गई है कि सीआरपीएफ कैंपों में भागकर गए मणिपुर के आदिवासी समुदाय के लोगों को वहां से निकाला जाए और उन्हें उनके घरों में सुरक्षित रुप ये पहुंचाया जाए। याचिका में मांग की गई है कि राज्य में हुई हिंसा की जांच असम के पूर्व डीजीपी हरेकृष्ण डेका के नेतृत्व में गठित एसआईटी करे। इस एसआईटी के कामों की मानिटरिंग मेघालय राज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व चेयरमैन जस्टिस तिनलियानथांग वैफेई करें ताकि आदिवासियों पर हमला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो सके।