शरद पवार विपक्षी एकता की अहम कड़ी हैं. महाराष्ट्र में दोनों पार्टियां साथ हैं, ऐसे में कांग्रेस जरूर चाहेगी कि शरद पवार उनके साथ आएं. एक तरफ जहां राहुल गांधी अयोग्य ठहराए जा चुके हैं, उन्हें सहयोगी पार्टियों की जरूरत हैं. ऐसे समय में पवार का हालिया बयान और उनकी किताब ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है. महाराष्ट्र में अटकलें शुरू हो गई हैं कि एनसीपी प्रमुख आगे क्या करने वाले हैं.
भले ही शरद ने ये किताब 2015 में लिखी है लेकिन अभी उनके बयान के बाद इस किताब में जिस तरह से अडानी का जिक्र किया गया है, उससे सियासी गलियारे में ये अटकलें भी लगने लगी हैं क्या ये बीजेपी और एनसीपी के एक साथ आने का पूर्व संकेत है.
1999 में भी शरद पवार की तरफ से ऐसी ही एक टिप्पणी आई थी. उस दौरान कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बना रहे थे. एनसीपी ने 1999 में कांग्रेस के खिलाफ राज्य चुनाव लड़ा था, लेकिन उसी साल उसने कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया था. उसके बाद वह 15 साल तक उतार-चढ़ाव के दौर में कांग्रेस के साथ साझेदार बने रहे. पवार केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री थे.
2014 में मोदी लहर आई, केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद कुछ महीनों बाद एनसीपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया. इसमें दोनों पार्टियां अन्य दो मुख्य मोर्चों, शिवसेना और बीजेपी की तरह अलग-अलग चुनाव लड़ रही थी. इस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन बहुमत से 22 सीटें दूर थी.
शरद पवार ने फिर सबको चौंकाया और बीजेपी को बाहर से समर्थन देने का ऐलान कर दिया. एक तरह से कह लें तो पवार की वजह से ही देवेंद्र फडणवीस को सबसे महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला.
पांच साल बाद 2019 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के बहुमत से बाहर हो गयी और पवार ने बीजेपी की सहयोगी शिवसेना को लुभाना शुरू कर दिया. उस समय उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा को बीजेपी ने ठुकरा दिया था. वजह पवार ही थे, जिन्होंने एमवीए सरकार बनाने के लिए शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. इसके बाद भी कई नाटकीय घटनाक्रम हुए. जिसमें सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस के साथ शरद पवार के भतीजे अजित पवार का शपथ लेना भी शामिल है.
दिलचस्प बात यह है कि पवार ने कभी सोनिया गांधी की जगह कांग्रेस छोड़ दी थी. लेकिन अपने हित के लिए बाद में पवार सोनिया गांधी को नेता मान लिया.
1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ दी थी. शरद ने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ के साथ मिलकर अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली थी. हालांकि उसी साल शरद ने कांग्रेस की मदद से महाराष्ट्र में अपनी सरकार भी बनाई थी. 1978 में शरद पवार इंदिरा गांधी से भी बगावत कर चुके हैं तब शरद की उम्र 27 साल थी.
कांग्रेस में पार्टी छोड़कर जाने वालों की लाइन लगी है. इसी बीच प्रमुख सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता शरद पवार का गौतम अडानी मामले को लेकर रुख कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल बनता जा रहा है.
हाराष्ट्र में एनसीपी के साथ गठबंधन कर सरकार चला चुकी कांग्रेस के लिए उस समय बड़ी दुविधा नजर आ रही है जब साल 2015 में आई शरद पवार की आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ के पन्ने अब पलटने शुरू किए जाने लगे हैं.
अपनी आत्मकथा में एनसीपी नेता शरद पवार की जमकर तारीफ कर चुके हैं. लोकसभा चुनाव में 2024 में उद्योगपति गौतम अडानी और केंद्र सरकार के कथित रिश्तों को मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही कांग्रेस के लिए शरद पवार ही सबसे बड़े रोड़ा नजर आ रहे हैं.
शरद पवार ने बीते दिनों एक इंटरव्यू में कहा कि एक इंडस्ट्रियल ग्रुप को टारगेट किया गया. पवार ने ये भी कहा कि इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच की मांग व्यर्थ है.शरद पवार का ये बयान ऐसे समय में आया जब सदन में 19 विपक्षी पार्टियां अडानी मुद्दे को जमकर उठा रही थी. इन तमाम विपक्षी पार्टियों की तरफ से मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए जा रहे थे. इस समय एनसीपी विपक्ष की एक बड़ी पार्टी है. शरद पार्टी के बड़े नेता हैं. ऐसे में उनके इस बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए.पवार की गौतम अडानी से दोस्ती कोई नई नहीं है. ये दोस्ती दो दशक पुरानी है. इसका जिक्र उन्होंने साल 2015 में मराठी भाषा में छपी अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ में भी किया है. शरद ने इस किताब में अडानी की खूब तारीफ की है. शरद पवार के बयान के बात ये किताब सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है.