दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में हुए गैंगरेप-मर्डर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों रवि, राहुल और विनोद की फांसी की सज़ा को रद्द करते हुए रिहाई का फैसला सुनाया। देश की सबसे बड़ी अदालत के इस फैसले को सुनकर हर कोई हैरान रह गया.
निचली अदालत और हाईकोर्ट ने गैंगरेप और हत्या से जुड़े इस केस को रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ मानते हुए तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल पुराने इस मामले में फैसले को बदलते हुए सोमवार को तीनों आरोपियों को बरी कर दिया.
पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी हार बताया. उन्होंने कहा कि मैं हार गई. उनका कहना है कि इस फैसले के इंतजार में हम जिंदा थे. लेकिन अब हार गए. हमें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से उनकी बेटी को इंसाफ मिलेगा. लेकिन इस फैसले के बाद अब जीने का कोई मकसद नहीं बचा.
पीड़िता के पिता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से उन्हें निराश किया है और 11 साल से अधिक समय तक लड़ाई लड़ने के बाद न्यायपालिका से उनका विश्वास उठ गया है. यह आरोप भी लगाया कि ‘सिस्टम’ उनकी गरीबी का फायदा उठा रहा है.
“मैं उम्मीद के साथ जी रही थी”
पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, “11 साल बाद भी यह फैसला आया है. हम हार गए… हम जंग हार गए… मैं उम्मीद के साथ जी रही थी… मेरे जीने की इच्छा खत्म हो गई है’ मुझे लगता था कि मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा.” पीड़िता के पिता ने कहा, “अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ. 11 साल से हम दर-दर भटक रहे हैं. निचली कोर्ट ने भी अपना फैसला सुनाया. हमें राहत मिली. हाईकोर्ट से भी हमें आश्वासन मिला लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमें निराश किया. अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ.”
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने की फैसले की आलोचना
सुप्रीम कोर्ट के इस निराशाजनक फैसले से महिला अधिकार कार्यकर्ताओं में भी निराशा है और उन्होंने इसकी आलोचना भी की है. पीड़िता के माता-पिता को ढांढस बंधाते हुए महिला अधिकार कार्यकर्त्ता योगिता भयाना ने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के इस गलत फैसले से स्तब्ध है. हम चाहते थे कि मौत की सज़ा को बरकरार रखा जाए, पर हमें लगता था कि इसे उम्र्रकैद में भी बदला जा सकता है. पर जो सुप्रीम कोर्ट ने किया, वो निंदनीय है.”
निचली कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सज़ा
इस पूरे मामले को ‘दुर्लभतम’ बताते हुए निचली कोर्ट ने 2014 में तीनों आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई थी. निचली कोर्ट के इस फैसले को हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा था. पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने इस फैसले को रद्द कर दिया. इससे पहले 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों की फांसी की सजा पर फैसला सुरक्षित रखा था.
क्या है पूरा मामला?
उत्तराखंड के पौड़ी के नैनीडांडा ब्लॉक के रहने वाले परिवार की बेटी दिल्ली में डाटा एंट्री आपरेटर के तौर पर काम करती थी। वह दिल्ली के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही थी और शिक्षिका बनना चाहती थी। परिवार की आर्थिक सहायता के लिए नौकरी करती थी। 9 फरवरी 2012 को जब वह अपने ऑफिस से लौट रही थी तो तीन लोगों ने उसका अपरहण कर जबरन अपनी लाल इंडिका गाड़ी में बैठा लिया। 3 दिन बाद उसकी लाश बहुत ही बुरी हालत में हरियाणा के रिवाड़ी के एक खेत मे मिली.
बलात्कार के अलावा उसे असहनीय यातना दी गई थी. उसे कार में इस्तेमाल होने वाले औजारों से पीटा गया, उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन फोड़े गए, सिगरेट से दागा गया. यहां तक कि उसके स्तन को भी गर्म लोहे से दागा गया, निजी अंग में औजार और शराब की बोतल डाली गई. उसके चेहरे को तेजाब से जलाया गया था.
मगर, गैंगरेप के बाद भयंकर यातनाएं देकर मारी गई ‘अनामिका’ को इंसाफ नहीं मिल सका. अब सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों को बरी कर दिया है. इसकी वजह पुलिस की खराब जांच और निचली अदालत में मुकदमे के दौरान बरती गई लापरवाही है.