उत्तर प्रदेश की भांति अब उत्तराखंड में भी गुलामी के प्रतीक चिह्न हटाने के साथ ही विभिन्न शहरों, स्थानों, सड़कों आदि के ब्रिटिशकालीन नाम बदले जाएंगे। इसके लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सभी विभागों को निर्देश भी दे दिए हैं कि जो भी गुलामी के पुराने प्रतीक हैं, उन्हें बदला जाए। उन्होंने इन प्रतीकों की रिपोर्ट भी मंगवाई है, जिनको हटाया जाएगा और प्रतीकों में बदलाव भी किया जाएगा।
उन्होंने कहा, “देश में हाल में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश के अंदर जो भी गुलामी के पुराने प्रतीक थे, उनको बदला जा रहा है और हटाया जा रहा है। उन प्रतीकों का परिवर्तन किया जा रहा है उसी तरह हमने सभी विभागों से कहा है कि ऐसे जो भी प्रतीक हैं, उन सभी को बदला जाएगा और हम उसके लिए पूरी रिपोर्ट मंगवा रहे हैं।”
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ब्रिटिशकालीन नाम बदलने की शुरुआत की थी। अब उत्तराखंड में भी इस दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। राज्य में लैंसडौन, मसूरी, देहरादून, नैनीताल, रानीखेत समेत विभिन्न शहरों व क्षेत्रों के साथ ही छावनी परिषदों के अंतर्गत सड़कों, स्थानों के नाम ब्रिटिशकालीन हैं, जिनमें अभी तक कोई बदलाव नहीं किया गया है, जबकि इनके पुराने अथवा नए नामकरण की बात समय-समय पर उठती रही है।
पुष्कर सिंह धामी की इस घोषणा को भारतीय जनता पार्टी का समर्थन मिल रहा है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि अगर लैंसडोन का नाम बदला जाता है, तो गुलामी की पहचान मिटाने की दिशा में यह अच्छा कदम होगा। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस पर भी कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा कि 70 साल तक देश में सत्ता सुख भोगने वालों को विचार करना चाहिए।
बता दें कि हाल में ही छावनी परिषद लैंसडौन ने लैंसडौन का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया है। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान लार्ड लैंसडौन भारत में अंग्रेज वायसराय थे और उन्हीं के नाम पर कालोंडांडा का नाम लैंसडौन रखा गया था। छावनी नगर लैंसडौन में अन्य कई स्थानों के नाम ब्रिटिशकालीन हैं। न केवल लैंसडौन बल्कि अन्य छावनी नगरों के अलावा मसूरी, देहरादून, नैनीताल में भी सड़कों, संस्थानों व सार्वजनिक स्थलों के ऐसे नामों की भरमार है।
अब ऐसे स्थानों, सड़कों व सार्वजनिक स्थलों के नाम बदले जाएंगे। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि राज्य में जो भी गुलामी के प्रतीक हैं, उन्हें हटाया जाएगा। यानी, अब ब्रिटिशकालीन नामों से मुक्ति मिलने के साथ ही संबंधित स्थलों के पुराने अथवा नए रखे जाएंगे।