इस्लामाबाद, 12 मई । पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान को तोशाखाना मामले में अभ्यारोपित किए जाने के दो दिन बाद इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी। यह स्थगन आदेश 08 जून को मामले की अगली सुनवाई तक प्रभावी रहेगा।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हुमायूं दिलावर ने खान के वकीलों की आपत्तियों को खारिज करते हुए 10 मई को पीटीआई प्रमुख को दोषी ठहराया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस्लामाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आमिर फारूक ने निचली अदालत को आगे की कार्यवाही से रोकने के आदेश के खिलाफ खान की याचिका पर आज सुनवाई की।
पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) ने पूर्व प्रधानमंत्री को उनके कार्यकाल के दौरान मिले उपहारों से संबंधित जानकारी का खुलासा नहीं करने के लिए आपराधिक कानून के तहत कार्यवाही की मांग करते हुए एक शिकायत दर्ज की थी।
इस्लामाबाद हाई कोर्ट की सुनवाई के दौरान पीटीआई प्रमुख के वकील ख्वाजा हारिस ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ शिकायत जिला चुनाव आयुक्त ने दी थी, न कि किसी सक्षम प्राधिकारी ने। उन्होंने कहा कि ईसीपी ने किसी को सक्षम प्राधिकारी नियुक्त करने के लिए पत्र प्रस्तुत नहीं किया।
उन्होंने कहा, ”चुनाव आयोग ने केवल अपने कार्यालय से शिकायत दर्ज करने को कहा है, सक्षम प्राधिकारी के बिना दायर शिकायत को नहीं सुना जा सकता है।” वकील ने कहा कि वह अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड के साथ प्रदान किए गए दस्तावेजों पर भरोसा कर रहे हैं।
इस बीच, मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि अंतरिम आदेश के खिलाफ समान प्रकृति की अन्य याचिकाएं हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश सीजे फारूक ने पूछा, “क्या इसे मुख्य याचिका के रूप में सुना जाना चाहिए?” खान के वकील ने कहा कि हालांकि इस मामले पर आपत्ति है, क्योंकि इसे पहले मजिस्ट्रेट द्वारा सुना जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि शिकायत निर्धारित समय के बाद दर्ज की गई थी।
इमरान खान पर आरोप तय
तोशाखाना मामले में अदालत द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि आरोपितों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं। इमरान खान ने सुनवाई के दौरान अदालत के सवालों का जवाब नहीं दिया था। आरोपित ने आरोप पत्र पर हस्ताक्षर करने से भी इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि वह अभियोजन पक्ष के गवाहों को बयान दर्ज कराने को लेकर 13 मई के लिए नोटिस जारी कर रही है। इसमें कहा गया है कि इमरान के वकील ने न्यायाधीश के खिलाफ आपत्ति जताई थी और मामले को किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था।
वकील ने कहा था कि वे 5 मई के फैसले को चुनौती देना चाहते थे और यह अदालत अपील पर फैसला आने तक मामले की सुनवाई नहीं कर सकती थी। आदेश में कहा गया है कि बचाव पक्ष ने सुनवाई से केवल एक दिन पहले अदालत का स्थान बदलने पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा था कि अदालत के स्थान को स्थानांतरित करना न्याय के रास्ते में एक बाधा थी। इस बीच, यह भी उल्लेख किया गया कि आरोपित ने न तो 5 मई के फैसले को चुनौती दी थी, न ही इसके खिलाफ कोई रोक जारी की गई थी।